Ajit Doval – M.K. Narayanan : जासूसी की दुनिया में अजीत डोभाल और एम.के. नारायणन का क्यों अत्यंत सम्मान से लिया जाता है जानें

Ajit Doval - M.K. Narayanan :
जनधारा 24 न्यूज डेस्क। Ajit Doval – M.K. Narayanan :
भारत के टॉप के खुफिया अफसरों की जब भी बात होती है तो
उनमें अजीत डोभाल और एम के नारायणन का नाम
अत्यंत सम्मान से लिया जाता है।
अजीत डोभाल - एम.के. नारायणन :
ऐसा हम नहीं भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानि “रॉ ”
के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत अपनी आत्मकथा में कहते है।
अजीत डोभाल - एम.के. नारायणन :
बाकी के अफसरों के बारे में भी उनकी रॉय क्या है
हम आपको ये भी बताएंगे बस आप बने रहिए जनधारा 24 के साथ-
Ajit Doval and M.K. Narayanan
वैसे तो ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख अपनी आत्मकथा लिखने से बहुत कतराते हैं।
और अगर लिखते भी हैं तो अपने साथियों के नामों और कामों का खुलेआम ज़िक्र
करने से परहेज़ कर जाते हैं। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख रहे
अमरजीत सिंह दुलत ने अपनी एक आत्मकथा लिखी है।
इस पुस्तक का नाम “अ लाइफ इन द शैडोज अ मेमॉएर” है।
क्या है इस किताब में खास
इस किताब में उन्होंने अपने बॉस रहे एम.के. नारायणनन और
अपने जूनियर रहे अजीत डोभाल की कार्यशैली पर अपनी बेबाक राय दी है।
दुलत लिखते हैं कि मैंने इंटेलिजेंस ब्यूरो के दिल्ली मुख्यालय में डेस्क पर
एक विश्लेषक के रूप में चार साल बिताए।
उस वक्त मुझे नॉर्थ ब्लॉक में एमके नारायणन के साथ
कमरा शेयर करने का सौभाग्य मिला था।
उस समय में मेरे सबसे बड़े बॉस ए.के. दवे हुआ करते थे।
उनके नीचे आर के खंडेलवाल थे जिन्हें नारायणन “कैंडी ” कह कर बुलाते थे।
AK Dave and Narayanan

हमारे बॉस ए के दवे को सनक थी कि वो देखें कि
फ़ाइल पर आप किस तरह से नोटिंग करते हैं।
अक्सर वो अपने साथियों की फ़ाइल पर नोटिंग पर झल्ला जाते थे।
और कहते थे कि इससे अच्छा तो एक सब-इंसपेक्टर लिख सकता है।
कई बार तो नारायणन भी उनकी इस सनक से खीज जाया करते थे।
तो वहीं दूसरी तरफ़ के.एन. प्रसाद होते थे, जो बाहर से
तो बहुत कठोर दिखते थे मगर अंदर से बहुत शालीन थे।
वे युवाओं को वो सब कुछ सिखाने के लिए तत्पर रहते थे जो वो जानते थे।
साम्यवाद के बहुत बड़े विशेषज्ञ थे नारायणन
ए.एस. दुलत का मानना हैं कि उन्होंने ख़ुफ़िया जानकारी के विश्लेषण के गुर
नारायणन को काम करते देखकर सीखे थे। उनसे उन्होंने ये भी सीखा कि
फ़ील्ड से आने वाली हर उत्साही ख़ुफ़िया अधिकारी की रिपोर्ट को कैसे
टोन डाउन किया जाता है। नारायणन ने उन्हें ये भी सिखाया कि
अगर संभव हो तो आप जो कुछ भी कहना चाहते हैं एक पेज के अंदर ही कह डालिए।
What happens to the files that come to Narayanan
दुलत लिखते हैं कि जब नारायणन के पास किसी विषय की फ़ाइल आती थी,
तो वो उसे अपने पास कुछ समय के लिए रखते थे ।
उसके बाद उस पर गहन मंत्रणा करने के बाद अपना प्रेजेंटेशन देते थे।
भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों में साम्यवाद के बहुत बड़े विशेषज्ञ नारायणन थे।
उस समय उनसे मेरा संपर्क बेहद सीमित रहा करता था,
मगर मुझे हमेशा ये अहसास रहता था कि मैं एक महान व्यक्तित्व की
उपस्थिति में कार्य कर रहा हूँ। हालांकि बाद में मुझे इस तरह का
अहसास आर.एन. काव की उपस्थिति में भी हुआ था.।
इंतज़ार के खेल में माहिर थे नारायणन
Ajit Doval and M.K. Narayanan : काव साहब नारायणन से इस मामले में बिल्कुल अलग थे कि
वो बहुत चुपचाप रहते थे और लोगों से कम खुलते थे।
उनके बारे में कहानी मशहूर थी कि जब तक वो रॉ के प्रमुख के पद पर रहे,
उनकी फोटो न तो किसी पत्रिका में दिखाई दी और न ही किसी समाचार पत्र में।
Modalities of Narayanan and Kao

नारायणन जहाँ मिली जानकारी का काफ़ी समय तक अध्ययन और विश्लेषण करते थे।
तो वहीं काव एक्शन में विश्वास करते थे। वो एक ऑपरेशन मैन थे,
जिनको अपने सहज ज्ञान पर पक्का भरोसा था।
दोनों अफसरों के व्यक्तित्व में ख़ासा फ़र्क था
लेकिन दोनों भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों के बेहतरीन अफसर थे।
Former IB chief Ramnath Kao
दुलत लिखते हैं, कि अगर नारायणन आप को पसंद करते थे,
तो उनको आपकी हर चीज़ पसंद आती थी, मगर यदि इसका उलटा होता था।
तो आपकी मुसीबतों का कोई अंत नहीं होता था।
वो उस समय असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर काम कर रहे थे,
पर वो तब तक विभाग में बहुत मशहूर हो चुके थे।
did not rush to take decisions
अजीत डोभाल - एम.के. नारायणन :
नारायणन के पास जानकारी की बहुतायत होने के बावजूद
वो फ़ैसला लेने में जल्दबाज़ी नहीं करते थे। कई बार वो एक फ़ाइल
को पढ़ने में घंटों, कई दिनों और कभी -कभी महीनों तक लगाते थे।
यही कारण था कि उनका विश्लेषण हमेशा उच्च कोटि का हुआ करता था।
नारायण से ही मैंने सीखा था कि यदि कोई निष्कर्ष निकालने से पहले
उसके सभी पहलुओं पर विचार करना सबसे अच्छा होता है.।
इंटेलिजेंस में हमेशा से ही इंतज़ार का खेल रहा है।
अब तक जितने भी लोगों से मेरा पाला पड़ा है,
इस खेल को खेलने में नारायणन से ज्यादा पारंगत कोई नहीं मिला।
Asia’s best intelligence officer to Narayanan
Ajit Doval and M.K. Narayanan : एम के नारायणन की नज़र हमेशा तेज़ रहती थी। यद्यपि वो दुलत से कहीं सीनियर थे
पर उन्हें बहुत पहले ये आभास हो गया था कि वो अपने बॉस आरके खंडेलवाल से बहुत ख़ुश नहीं हैं।
उनकी भी एक ही कमज़ोरी थी कि वो अपनी हीरो वरशिप कराना पसंद करते थे।
उनको अपनी ख्याति का अंदाज़ा था और वो हमेशा चाहते थे कि नोग उनकी तारीफ़ों के पुल बाँधे।
हालांकि इसकी कमी उन्हें कभी नहीं हुई। जवाहरलाल नेहरू के इंटेलिजेंस चीफ़ रहे बी.एन मलिक,
जिन्होंने एक किताब लिखी थी “माई इयर्स विद नेहरू”,
में एमके को एशिया का सर्वश्रेष्ठ ख़ुफ़िया अधिकारी मानते थे।
India’s spies Doval – Dulat – Narayanan

ए.के. दुलत लिखते हैं कि मैंने नारायणन को कई बार
शुक्रवार की साप्ताहिक बैठक को संबोधित करते हुए देखा है।
जब वो बोलते थे तो उनके सम्मान में कमरे में पिन ड्रॉप शाँति छा जाया करती थी।
उनको हमेशा ये पता रहता था कि किस इलाके में क्या हो रहा है?
वो यह बात भी पसंद करते थे कि हर जानकारी के लिए
उनपर ही निर्भर रहा जाए। किसी भी विषय की जानकारी लेने के
लिए सबसे पहले उन्हें ही बुलाया जाए।
इस मामले में वो एफ़बीआई के पूर्व प्रमुख एडगर हूवर की ही तरह थे।
उनके बारे में कहा जाता था कि उनके पास हर विषय
और हर उस व्यक्ति के बारे में फ़ाइल थी,
जिनसे अपने जीवन में वो कभी मिले थे।
दिल्ली में सत्ता के गलियारों में उनसे बेहतर
चलना कोई जानता ही नहीं था।
Gandhi family’s faith in him
गाँधी परिवार का उनमें बहुत बड़ा विश्वास था।
यही वजह है कि ख़ुफ़िया दुनिया में वो हमेशा ही प्रासंगिक रहे।
ख़ासतौर से प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ख़ुफ़िया जानकारी के
लिए नारायणन पर ही निर्भर रहा करते थे।
पीएम राजीव गांधी को खुफ़िया जानकारी लेने का बहुत शौक था।
उनको इसका अंदाज़ा था कि
ख़ुफ़िया जानकारी से विदेश नीति को
किस तरह से प्रभावित किया जा सकता है।
Loved meeting Narayanan: Dulat
दुलत लिखते हैं, वो नारायणन से मिलना खूब पसंद करते थे
और उनका बहुत सम्मान भी करते थे। उनकी देर रात बैठक होती थी
जिसमें नारायणन को कॉफ़ी और चॉकलेट भी सर्व की जाती थी।
Know what former Prime Minister Rajiv Gandhi was like
पूर्व पीएम राजीव गांधी हमेशा ये जानने के लिए उत्सुक रहते थे कि
दिल्ली में विदेशी दूतावासों की क्या गतिविधियाँ हैं ?
एक बार तो इंटेलिजेंस ब्यूरो की टोही टीम के साथ
अरुण सिंह और अरुण नेहरू ये देखने के लिए गए थे कि
ज़मीन पर क्या हो रहा है ?
जब राजीव गांधी पड़ गए थे नारायणन के पीछे
वे एक जगह लिखते हैं कि नारायणन ने मुझे एक बार यह भी बताया था कि,
एक ख़ास जानकारी देने पर पीएम राजीव गांधी उनके पीछे पड़ गए थे।
वो इस जानकारी का स्रोत जानना चाहते थे,
लेकिन नारायणन का जवाब था कि – प्रधानमंत्री, मेरा काम है
आपको जानकारी देना। आपको ये पूछने का हक नहीं है कि
ये जानकारी मुझे कहाँ से मिली है. ?