स्पीड के जलवे के लिए क्या हमारी सडक़ें तैयार हैं
राहुल पाण्डेय
इस साल भारत की सडक़ों पर तकरीबन तीन दर्जन नई सुपरबाइक्स उतारी जा रही हैं। पिछले साल कोरोना की वजह से इन सुपरबाइक्स की लॉन्चिंग नहीं हो पाई थी, और इनकी ग्लोबल सेल भी काफी गिर गई थी। लेकिन इस साल के बजट में जिस तरह से नई सडक़ें, खासकर एक्सप्रेस वे का जाल बिछाने की घोषणा हुई है, उससे सुपरबाइक्स बनाने वाली कंपनियों में खासा उत्साह है। भारत में सुपरबाइक्स के शौकीनों की सबसे बड़ी दिक्कत यही रही है कि ढाई-तीन सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तो दूर, यहां बाइक सौ-सवा सौ की स्पीड भी मुश्किल से ही पकड़ पाती है। हालांकि एक्सप्रेस वेज ने इस दिक्कत को कम किया है। यमुना एक्सप्रेस वे पर सुजुकी हायाबुसा को 300 की स्पीड टच करते तो मैंने खुद देखा है।
स्टेटस का टशन
कोई कह सकता है कि भारत जैसे गरीब मुल्क में सुपरबाइक्स की मार्केट कहां और कितनी है, जो इन्हें बनाने वाली कंपनियों में इतना जोश आ गया है। सियाम यानी सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के पिछले पांच साल के आंकड़े देखें तो 2016 में भारत में सबसे ज्यादा सुपरबाइक्स बिकी थीं- तकरीबन सवा सात हजार। साल 2020 में यह बिक्री काफी नीचे आ गई। इस साल साढ़े पांच हजार ऐसी बाइकें ही बिक पाईं। इनमें भी सबसे बड़ा हिस्सा हार्ले डेविडसन का रहा, मगर विशेषज्ञ हार्ले को सुपरबाइक नहीं मानते। वे उसे ट्रैवलिंग बाइक कहते हैं। दूसरी तरफ लोग हार्ले को ट्रैवलिंग बाइक से कहीं ज्यादा स्टेटस सिंबल मानते हैं, जिसकी टशन किसी बीस लखिया कार से भी ज्यादा होती है।
एक बात ध्यान रखने वाली है कि सारी स्पोर्ट्स बाइक्स सुपरबाइक्स नहीं होतीं। सुपरबाइक कहलाने के लिए बाइक का इंजन का कम से कम 600 सीसी का होना जरूरी है। वहीं भारत में स्पोर्ट्स बाइक की श्रेणी 150 सीसी के इंजन से ही शुरू हो जाती है। कई कंपनियां 150 सीसी के इंजन वाली बाइकों को स्पोर्ट्स बाइक कहकर बेचती जरूर हैं, लेकिन अगर बात बाइकिंग स्पोर्ट्स की करें तो वहां पिछले तीस सालों से सुपरबाइक्स का एकछत्र राज रहा है। और इसमें सबसे बड़ा हिस्सा जापानी गाडिय़ों का है। यामाहा, होंडा और सुजुकी कंपनियों की बनाई सुपरबाइक्स को अब तक अगर कोई टक्कर दे पाया है, तो वह है अमेरिकी एमटीटी टर्बाइन सुपरबाइक, जिसमें 320 हॉर्सपावर का इंजन लगा है। बता दें कि इन सभी का इंजन 900 सीसी से ऊपर का है और सभी 300 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार छू चुकी हैं। कावासाकी का लेटेस्ट मॉडल निंजा-एच2 तो 400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार का दावा करता है, वह भी 310 घोड़ों की ताकत से।
इटैलियन बाइक निर्माता कंपनी दुकाती इस साल तकरीबन एक दर्जन मॉडल लॉन्च करने जा रही है। इटली की ही बेनेली का एक मॉडल इसी साल सडक़ पर उतरने के इंतजार में है तो ब्रिटेन की ट्रिंफ अपने यहां नौ मॉडल उतारने जा रहा है। पिछले साल हार्ले डेविडसन ने जिस तरह से अपना काम-धाम भारत से समेटा, उससे एक डर था कि दुनिया भर की बाकी बड़ी कंपनियां भी कहीं हार्ले की ही राह न पकड़ लें। अड़चनों से बचने के लिए इन कंपनियों ने दूसरा रास्ता अपनाया है। ब्रिटेन की कंपनी ट्रिंफ ने बजाज वालों से करार कर रखा है तो बेनेली ने अधिश्वर ऑटो राइड इंडिया से समझौता किया है। दुकाती, सुजुकी, होंडा और कावासाकी अपना माल खुद ही बेच रही हैं।
एक सवाल यह भी उठता है कि भारत में आम तौर पर सडक़ों का जो हाल है, उसे देखते हुए पांच लाख रुपये की कीमत से शुरू होने वाली ये सुपरबाइक्स कितनी कामयाब होंगी? दरअसल सुपरबाइक्स का बेस काफी नीचे होता है और गड्ढों या स्पीड ब्रेकर से उनको काफी नुकसान पहुंचता है। गड्ढों जितना ही नुकसान इसमें बार-बार लगने वाली ब्रेक भी पहुंचाती है। जिन्हें भारत में स्पोर्ट्स बाइक कहकर बेचते हैं, उनमें फोर स्ट्रोक इंजन लगता है, जबकि सुपरबाइक्स में कार की ही तरह का फोर सिलिंडर इंजन लगता है। इस इंजन को कूलेंट चाहिए होता है, जो बाइक के गड्ढे में जाने या बार बार ब्रेक लगाने से लीक हो जाता है। भारी इंजन के चलते सुपरबाइक्स काफी गर्मी भी पैदा करती हैं, जिससे इनको भीड़भाड़ वाले इलाके में चलाना अक्सर मुसीबत का सबब बन जाता है।
इन बाइक्स के लिए तेल का इंतजाम भी टेढ़ी खीर है। बड़े शहरों में तो इनका तेल आराम से मिल जाता है, मगर छोटे शहरों में लोग इनमें सामान्य तेल ही भराते हैं। इससे कभी-कभी बाइक भगाते वक्त इंजन जरा सा मिस करता है। इसका तोड़ यह निकाला गया है कि इंजन में एक छोटा सा ऑक्टेन बूस्टर लगा देते हैं, जो तेल को और भी परिष्कृत करके इंजन में भेजता है। इन बाइक्स के टायरों का रखरखाव भी कम मुश्किल नहीं है। सडक़ और मोड़ों पर चिपककर चलने के लिए इनमें स्पेशल टायर लगाए जाते हैं, जो काफी महंगे आते हैं और बहुत जल्दी घिस जाते हैं। भारत में तीन दर्जन सुपरबाइक्स लॉन्च की जा रही हैं तो कंपनियों को इसके बारे में भी गंभीरता से सोचना होगा।
खुलेगी नई राह
सुपरबाइक्स लेते वक्त लोग इनका ऐवरेज नहीं पूछते। उनका पहला सवाल होता है, मैक्सिमम स्पीड कितनी मिलेगी और कितनी देर में? हर कोई सुपरबाइक संभाल भी नहीं सकता। इसके लिए सडक़ ही नहीं, बाइकर की देह का मजबूत होना भी जरूरी है। इसके 900 सीसी के इंजन को और पावर देने के लिए टर्बोचार्जर या सुपरचार्जर तो लगे ही होते हैं, कुछ कंपनियों ने इंजन से ही इलेक्ट्रिक चार्ज लेकर वापस इंजन को देने का इंतजाम कर रखा है। बाइक्स पर बनी फिल्म ‘धूम’ में इस्तेमाल की गई सुजुकी हायाबुसा के पीछे नाइट्रस ऑक्साइड के सिलेंडर लगाए गए थे, पर वह काम अब नए तरह के चार्जर ही कर दे रहे हैं। इस बार के बजट में सडक़ें बनाने का जैसा प्लान बताया गया है, उसका पचास फीसदी भी पूरा हो जाए तो स्पीड में आजादी तलाशने वालों को एक नई राह मिल जाएगी।
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