कोरोना-स्वास्थ्य पर केंद्रित बजट : आर्थिक नीतियों का सवाल है निजीकरण

केन्द्र सरकार के आम बजट में उम्मीद के मुताबिक स्वास्थ्य क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया। देश इस वक्त कोरोना महामारी का सामना कर रहा है जिसके लिए बड़े बजट की आवश्यकता थी। कोरोना को देखते हुए हेल्थकेयर के लिए 2.23 लाख करोड़ दिए गए हैं। यह पिछले साल से 137 ज्यादा है। देशभर में कोरोना वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए का फंड रखा गया है। इसके अलावा देश में 75 हजार नेशनल हेल्थ सेंटर बनेंगे। 602 जिलों में क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल शुरू किए जाएंगे। हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने के लिए आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना लाई गई है। गांवों में 17,000 और शहरों में 11,000 हेल्थ और वेलनेस सेंटर खोले जाएंगे। निमोनिया की नीमोकॉक्कल वैक्सीन पूरे देश में बच्चों को दी जाएगी। इससे 50 हजार बच्चों की हर साल जान बचाई जा सकेगी।
कुल मिलाकर स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़े स्तर पर पैसा खर्च किया जाना है वहीं दूसरी तरफ कर्मचारियों व मध्यम वर्ग को कोई राहत नहीं दी गई। टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया। मध्यम वर्ग विगत वर्षों से टैक्स में राहत की मांग करता आ रहा था। वृद्ध पेंशनधारकों को सरकार ने इनकम टैक्स रिटर्न की अनिवार्यता समाप्त कर राहत दी है। वित्त मंत्री ने बजट के आकार में विस्तार किया है। पूंजीगत निवेश बढ़ाया, जिससे रोजगार बढऩे व कोविड के कारण सुस्त हुई अर्थव्यवस्था के सुदृद्ध होने का दावा किया गया है। नए स्टार्ट-अप को 2022 तक टैक्स में राहत दी गई। महामारी के दौर में सरकार ने किसी नए टैक्स का बोझ नहीं डाला लेकिन सीधी राहत भी नहीं दी। जहां तक सरकार की आर्थिक नीतियों का सवाल है निजीकरण व उदारीकरण को आर्थिक तरक्की के मूलमंत्र के रूप में देखा गया है।
सरकार ने घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों में अपना हिस्सा बेचने की योजना बनाई है। दो सरकारी बैंकों, एक बीमा कंपनी व कई अन्य कंपनियों से हिस्सेदारी बेचकर 2.38 लाख करोड़ प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है। इसी प्रकार प्रत्यक्ष विदेश निवेश का सीधा 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसद कर दी गई है। वैश्वीकरण के दौर में विनिवेश, निजीकरण व उदारीकरण विश्व के हर बड़े-छोटे देश में आर्थिकता का हिस्सा बन रहे हैं लेकिन इस मामले में रोजगार व आम जनता के हितों के प्रति सतर्क रहने की भी आवश्यकता है। विनिवेश के दौर में विकास को रोजगार बढ़ाने की चुनौती का सामना करना होगा। सरकारी कंपनियों को मजूबत करने की नीति को अनदेखा नहीं किया जा सकता जिन कंपनियों में अभी भी चल सकने की संभावना है, उन्हें संभालने की योजना भी बनानी चाहिए।

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