राजनीति ताकत और अहंकार का खेल : पंजाब में लोकतंत्र का अपमान

पंजाब में स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर 14 फरवरी को चुनाव सम्पन्न होने वाले हैं, किंतु जिस प्रकार जिला फाजिल्का, फिरोजपुर और तरनतारन में प्रत्याशियों के नामांकन पत्र रोकने के लिए पथराव व मारपीट की गई है, उससे ऐसा लग रहा है कि अब राजनीति ताकत और अहंकार का खेल हो लिया है। वास्तव में लोकतंत्र में विपक्षी के बिना राजनीति की कल्पना ही नहीं की जा सकती। देश में प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव लडऩे का अधिकार है। राजनीति किसी की जागीर नहीं। यह नैतिक तौर पर भी नीच हरकत है कि किसी प्रत्याशी को नामांकन पत्र दाखिल करने से रोका जाए।
विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनावों में हिंसक घटनाओं में निरंतर गिरावट आ रही है, लेकिन पंचायती चुनावों व स्थानीय निकाय चुनावों में हिंसक घटनाएं बढ़ रही हैं। चुनावों में पहले हिंसा केवल मतदान के दिन होती थी, अधिकतर फर्जी वोट डालने-रोकने या फिर बूथों पर कब्जा जैसी घटनाएं होती थी, लेकिन छोटे स्तर के चुनावों में नामांकन दाखिले के वक्त बढ़ी हिंसक घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं। यह केवल निम्न स्तर के नेता की संकुचित सोच का ही परिणाम नहीं बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की भी राजनीतिक साजिश से इन्कार नहीं किया जा सकता।
बूथ स्तर पर अपनी पार्टी ईकाईयों को मजबूत करने के लिए अपने वर्करों को उकसाकर किसी भी प्रकार की हिंसक घटनाओं को अंजाम देने से नहीं कतराते। इस खतरनाक परंपरा की सबसे बड़ी चोट प्रदेश की जनता को झेलनी पड़ रही है। गांव स्तर पर राजनीतिक शत्रुता तनाव का कारण बन रही है, यही कारण है कि पिछले दो तीन पंचायती चुनावों में हत्याओं की कई घटनाएं घटीं हैं। विधायकों के खिलाफ हिंसा के मामले दर्ज हो रहे हैं। देखा जाए तो इन चुनावों में विधायकों व सांसदों की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए, ये चुनाव छोटे नेताओं को वरिष्ठ नेताओं की दखलअंदाजी के बिना लडऩे दिया जाना चाहिए। विधायकों पर इस बात का दबाव नहीं होना चाहिए कि पार्टी से सबंधित पार्षदों की जीत-हार से विधायक की लोकप्रियता, कार्यकुशलता या वफादारी तय की जाएगी।
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