कॉमेडियन की गंभीर बातें : बेहद अहम है लतीफों या व्यंग्य से ऊपर सुप्रीम कोर्ट या उसके जज भी नहीं

स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने जो कहा है, उस पर सारे देश को ध्यान देना चाहिए। उनका ये कहना बेहद अहम है कि लतीफों या व्यंग्य से ऊपर सुप्रीम कोर्ट या उसके जज भी नहीं हैं। ये बात अगर देखी जाए तो आधुनिक लोकतंत्र की भावना के अनुरूप है। आखिर न्यायपालिका भी राज्य-व्यवस्था का हिस्सा है। राज्य-व्यवस्था जनता की है। तो जनता से ऊपर व्यवस्था कैसे हो सकती है। कामरा जजों और न्यायपालिका को लेकर ट्वीट के लिए अदालत की अवमानना की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उन्होंने ट्वीट न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को कमतर करने की मंशा से नहीं किए थे। यह मान लेना कि सिर्फ उनके ट्वीट से दुनिया के सबसे शक्तिशाली अदालत का आधार हिल सकता है, उनकी क्षमता को बढ़ा-चढ़ा कर समझना है।
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के जवाब में दायर किए गए हलफनामे में कामरा ने कहा- ‘जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट जनता के उसमें विश्वास को महत्व देता है, ठीक उसी तरह उसे जनता पर यह भी भरोसा करना चाहिए कि जनता ट्विटर पर सिर्फ कुछ चुटकुलों के आधार पर अदालत के बारे में अपनी राय नहीं बनाएगी। न्यायपालिका में लोगों का विश्वास उसकी आलोचना या किसी टिप्पणी पर नहीं, बल्कि खुद संस्थान के अपने कार्यों पर आधारित होता है। क्या ये बातें तार्किक नहीं हैं। कामरा ने स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी का उल्लेख भी किया, जिन्हें उस संभावित व्यंग्य के आधार पर जेल में डाल रखा गया है, जो उन्होंने अभी किया ही नहीं था। इसलिए कामरा की ये बात सच है कि आज हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले के साक्षी बन रहे हैं। जहां मुनव्वर फारूकी जैसे हास्य कलाकारों को उन चुटकुलों के लिए जेल भेजा गया है जो उन्होंने नहीं सुनाए हैं, वहीं दूसरी तरफ स्कूली छात्रों से राजद्रोह के मामले में पूछताछ की जा रही है। दरअसल, न्यायपालिका की असली चिंता यही प्रवृत्ति होनी चाहिए। लेकिन जब न्यायपालिका तांडव जैसे अति साधारण वेबसीरिज के मामले में बेवजह खड़ा किए गए विवाद से घिरे सीरिज निर्माता के बचाव में खड़ी नहीं होती, तो इस बात पर शक होने लगता है कि आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमारा मूलभूत संवैधानिक मूल्य है। कामरा ने कहा है कि उन्होंने एक मजाक किया था, और उनकी राय है कि मजाक के लिए बचाव की जरूरत नहीं होती। इन बातों ने कोर्ट आगे सचमुच गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैँ।

 

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