अमेरिका के करीब आने को पाक की तिकड़में
जी. पार्थसारथी
इमरान खान की एक विलक्षण खासियत यह है कि भारत के प्रति अविश्वास और खुन्नस को किसी न किसी रूप में जाहिर कर देते हैं, यहां तक कि अपनी विदेश नीति में भी। वैश्विक महामारी के प्रकोप के समय भी उन्होंने यही रवैया अपनाने की ठान रखी है। वे चाहते तो अपने मुल्क के लिए एक भरोसेमंद कोविड वैक्सीन अपनी दहलीज पर बजरिया भारत से मिल जाती। विश्वभर में कोविड वैक्सीन की कमी देखते हुए भारत ने ब्राजील से लेकर मोरक्को, मालदीव, सेशल्स, बांग्लादेश, श्रीलंका, मॉरीशस और म्यांमार तक अनेक देशों को यह दवा मुहैया कराई है। पाकिस्तान के अलावा दक्षेस संगठन के बाकी सभी मुल्कों ने अपनी फौरी वैक्सीन जरूरतों के लिए भारत का रुख किया है। उनकी मांग पर तुरंत विचार करते हुए भारत ने भी उचित मूल्य, बराबर आवंटन और चरणों में वैक्सीन देने पर सहमति व्यक्त की है। बेशक भारत के लोगों को पाकिस्तानी सेना की भूमिका को लेकर कुछ एतराज हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह सोच आम पाकिस्तानी जनता के प्रति दुर्भावना में तबदील हो जाती।
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी द्वारा अपने चीनी समकक्ष वांग यी से लगाई गुहार पर चीन अपनी ‘साइनोफार्म’ नामक वैक्सीन की 5 लाख खुराकें पाकिस्तान को मुफ्त में देने को राजी हो गया है, इससे चीन के लिए पाकिस्तान को अपनी गिरफ्त में और ज्यादा रखने में सहूलियत होगी। वैसे भी चीन का यह तरीका रहा है कि वह एशिया और अफ्रीका भर के उन देशों को घुटने पर होने को मजबूर कर देता है जो उसकी ‘मदद’ की एवज में भारी कर्ज के तले दब जाते हैं। अब पाकिस्तान ने भी खुद को उस स्थिति में ला दिया है, जहां उसे अपनी हर आपातकालीन आर्थिक सहायता के लिए चीन के पेशेवर बैंकों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है। ताजा प्रकरण में सऊदी अरब से उठाया गया 3 खरब डॉलर का कर्ज चुकाने की खातिर पाकिस्तान अब चीनी बैंकों से उधार ले रहा है। यह हालात बताते हैं कि सऊदी अरब के साथ उसके रिश्तों में बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है। विगत में यह सऊदी अरब ही था, जिसने अफगानिस्तान में सोवियत संघ की आमद के तुरंत बाद पाकिस्तान को अमेरिका से मिले एफ-16 लड़ाकू विमानों की कीमत चुकाई थी। एक समय सऊदी अरब में इस्लाम के सबसे पवित्र इस्लामिक धर्मस्थलों की सुरक्षा का जिम्मा पाकिस्तानी सैन्य टुकडिय़ों का था। वह भी वक्त था जब जनरल मुशर्रफ द्वारा नवाज़ शरीफ को देश निकाला देने के बाद सऊदी अरब ने उन्हें और परिवार को पनाह दी थी। सऊदी अरब के 84 वर्षीय सुल्तान सलमान आज भी नवाज़ शरीफ की बहुत इज्जत करते हैं।
लंबे समय से इमरान खान उस पाकिस्तानी सेना के प्रिय रहे हैं, जिसने जनरल जिया उल हक के समय से खुद को इस्लामिक विचाराधारा में ढाल रखा है। जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों को पाक सेना अपना प्राकृतिक सहयोगी समझती है। नवाज़ शरीफ इस काम में काफी चतुर थे कि एक तरफ तो खुद को सार्वजनिक रूप से कट्टर इस्लामिक अभिरुचियों वाला पेश किया करते थे तो दूसरी ओर राजनीतिक और निजी सामाजिक दायरे में उदारवादी। लेकिन इमरान खान पर उन्हें मुख्यधारा राजनीति में लाने वाले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व मुखिया ले. जनरल हमीद गुल का खासा प्रभाव रहा है, जो स्वयं कट्टर इस्लामिक विचार रखते थे और उसे भारत से खासतौर पर खुन्नस थी। इस किस्म की सांप्रदायिक कट्टर सोच वाली पृष्ठभूमि से आए इमरान खान ने, जो अतंर्राष्ट्रीय मामलों में भी अनाड़ी हैं, इस्लामिक जगत में व्याप्त आपसी धड़ेबाजी और धार्मिक आस्थागत ध्रुवीकरण को ध्यान में न रखकर अपने तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दिया। अपने पश्चिमी पड़ोसियों के इस इतिहास की अनभिज्ञता वाले इमरान खान से ऐसा ही एक घातक निर्णय तुर्की और मलेशिया के नेतृत्व में नये बने अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक गुट की सदस्यता लेकर कर डाला, यह इस्लामिक जगत पर सऊदी अरब के नेतृत्व को चुनौती देने वाला काम है।
इस पर सऊदी अरब और अन्य अरबी मुल्कों ने तुरंत प्रतिक्रिया की। जल्द ही इमरान खान को अपना फैसला बदलना पड़ा। लेकिन सऊदी के नेतृत्व में अन्य अरब देशों का पाकिस्तान के प्रति गुस्सा जारी है। अरब देशों से पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद लगभग बंद हो चुकी है। यूएई ने अपने यहां पाकिस्तानी कामगारों को वापस जाने का नोटिस जारी कर दिया और सऊदी अरब में भी उनका स्वागत वैसी गर्मजोशी से नहीं हो रहा, जैसा कभी हुआ करता था। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को ऋण की पाई-पाई चुकाने को मजबूर कर दिया है। जब पाक सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा सऊदी अरब पहुंचे तो न तो सऊदी सुल्तान और न ही युवराज सलमान ने उनकी अगवानी की। चीन अब पाकिस्तान में चल रही परियोजनाओं की शर्तों का पुनरावलोकन कर रहा है, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा योजना इनमें से एक है। चीनियों ने पहले ही पाकिस्तान को अपने कर्जजाल में जकड़ रखा है।
ऋण अदायगी की एवज में वह चीन के हाथ में अपना और ज्यादा इलाका सौंप रहा है। ग्वादर बंदरगाह पर पाकिस्तान की सार्वभौमिकता की चीन सरासर अनदेखी करने लगा है, जहां स्थानीय बलूचों समेत पाकिस्तानी नागरिकों के घुसने पर रुकावटें खड़ी कर दी गई हैं। एक बार जब चीन सिंध में अपने नौसैन्य अड्डे बना लेगा तो इसी तरह का परिदृश्य वहां भी देखने को मिलेगा। इसी तर्ज पर गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में, जहां चीन 1100 मेगावाट क्षमता वाला पनबिजलीघर बना रहा है, वहां बढ़ती चीनी आर्थिक-सैन्य उपस्थिति से इस क्षेत्र का एकीकरण शिनजियांग प्रांत के साथ होता जा रहा है। पाकिस्तान ने पहले ही साथ लगती जम्मू-कश्मीर की शक्सगाम घाटी चीन को उपहार में दी हुई है। इससे चीन को गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर अरब सागर तक अपना पहुंच मार्ग बनाने की सुविधा मिल गई है।
इस तथ्य के मद्देनजर कि इमरान खान ने अपनी बेवकूफियों से इस्लामिक जगत के साथ पाकिस्तान के रिश्ते बिगाडक़र रख दिए हैं, सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा नुकसान कम करने की खातिर सऊदी अरब में अपनी सेना की भूमिका बढ़ाने के उपायों में लगे हैं। नसीम ज़ेहरा एक पाकिस्तानी पत्रकार हैं, जिन्हें लगभग देश निकाले में रहना पड़ रहा है। उन्होंने बताया है कि अब देश की विदेश नीति परिचालन पर सेना और ज्यादा नियंत्रण करने लगी है और इसके लिए अपने सैन्य अधिकारी ले. जनरल बिलाल अकबर को सऊदी अरब का अगला राजदूत नियुक्त करवाया है। ज़ेहरा ने यह भी रहस्योद्घाटन किया कि सऊदी युवराज सलमान के साथ जनरल बाजवा गुप्त रूप से संपर्क साधे हुए हैं। ले. जनरल बिलाल अकबर का मुख्य काम सऊदी प्रशासन के साथ मिलकर अपने देश का संपर्क इस्राइल से बनवाना होगा ताकि पाकिस्तान-इस्राइल राजनयिक संबंध बन सकें और पाकिस्तानी सेना खुद यही चाहती है। हाल ही में पाकिस्तानी-इस्राइली सेनाएं आर्मेनिया की लड़ाई में एक ही पाले में साथ मिलकर काम कर रही थीं। पाकिस्तानी सेना इस घटनाक्रम का इस्तेमाल कर इस्राइल के साथ निकट संबंध बनाने की इच्छुक है। इसकी खातिर वह ईरान के साथ मौजूदा मित्रतापूर्ण रिश्तों में भी बदलाव को तैयार है ताकि बाइडेन प्रशासन का भरोसा जीतने का उपाय हो सके। नसीम ज़ेहरा के शब्दों में : ‘अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद विरोधी रहे तीन पक्ष-नेत्नयाहू, मोहम्मद बिन सलमान और बाजवा- खुद को एक ही पाले में खड़े हुए पा रहे हैं।’