समग्रता से राष्ट्रीय विकास का संकल्प
राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी
किसी भी राष्ट्र के समग्र विकास की परिकल्पना उसके द्वारा लक्षित आय-व्यय की आयोजना एवं उसे फलीभूत करने की इच्छा शक्ति से ही समझी जा सकती है। वर्तमान बज़ट इसी परिप्रेक्ष्य को उद्घाटित करने की आर्थिक वैचारिकी है। इस बजट में भारत को जगत गुरु के रूप में पुनर्स्थापित करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन का मार्ग भी प्रशस्त किया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, शिक्षा को न केवल राष्ट्रीय विकास के सबसे सशक्त साधन के रूप में स्वीकार करती है बल्कि विकास के सभी मानकों को स्थापित करने का मजबूत सूत्र भी है। यह बज़ट वस्तुत: शिक्षा की इसी भूमिका को आर्थिक संबलन प्रदान करता है, जिसके तहत सबके लिए शिक्षा को सुनिश्चित करने एवं कौशल विकास पर बल दिया गया है। इस बज़ट में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग हेतु वैधानिक मान्यता, 09 शहरों में एकछत्र संस्थानों की स्थापना, 10 हजार करोड़ के वार्षिक बजट के साथ राष्ट्रीय अनुसन्धान न्यास, 100 सैनिक स्कूलों की स्थापना, कौशल विकास हेतु संयुक्त अरब अमीरात एवं जापान के साथ सहभागिता, लेह में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना आदि शिक्षा क्षेत्र से सम्बंधित महत्वपूर्ण घोषणाएं हैं।
यह बज़ट शिक्षा के क्रियान्वयन का आर्थिक आधार एवं संकल्प का प्रस्तुतीकरण है, जिसके अंतर्गत प्रथम प्रयास में 15 हजार विद्यालयों को समृद्ध किया जाएगा। ये विद्यालय देश भर में स्कूली शिक्षा हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के मॉडल के रूप में कार्य करेंगे। प्राथमिक शिक्षा स्तर की गुणवत्ता का विकास करके ही शिक्षा के मौलिक अधिकार को गुणवत्तापूर्ण तरीके से हासिल किया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की एक महत्वपूर्ण चिंता देश में भारत बोध से ओतप्रोत अनुशासित नागरिक निर्माण करना है, जिसको इस बज़ट में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में धारण करते हुए नगर समाज के सहयोग से देश भर में 100 सैनिक विद्यालय स्थापित किए जाएंगे। जन शिक्षा को सुलभ बनाने के अपने संवैधानिक दायित्व के तहत जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु इस बजट में कई विशेष प्रावधान किए गए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से आदिवासी क्षेत्रों में 750 एकलव्य आवासीय विद्यालय स्थापित करना है। इस कार्य हेतु बजट में 20 करोड़ तथा पहाड़ी क्षेत्रों में 48 करोड़ का वित्त आवंटित किया गया है। साथ ही कुल 7,524 करोड़ रुपये में से, सबसे बड़ा हिस्सा-2,393 करोड़ रुपये आदिवासी शिक्षा के लिए आवंटित किया गया है। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के कल्याण हेतु भी इस बजट में विशेष प्रावधान किए गए हैं, जिसके अंतर्गत 2026 तक 35219 करोड़ की धनराशि का आवंटन किया गया है।
विद्याथियों में कौशल-परक प्रशिक्षण हेतु इस बजट में 3000 करोड़ की धनराशि का आवंटन किया गया है। कौशल विकास हेतु जापान तथा संयुक्त अरब अमीरात के साथ साझेदारी एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे प्रख्यात संस्थाओं को विदेशों में वैश्विक कौशल विकास हेतु नवीन कार्यक्रमों में सहभागिता का अवसर प्राप्त होगा। राष्ट्रीय अनुसन्धान फाउंडेशन के लिए प्रति वर्ष 10 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शोध हेतु वित्त केवल केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को ही प्राप्त होता था परन्तु अब अपनी गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धा के आधार पर राज्य एवं निजी विश्वविद्यालय भी राष्ट्रीय अनुसन्धान फाउंडेशन शोध हेतु अनुदान प्राप्त कर सकते हैं।
देश के प्रमुख 09 शहर जो शिक्षा एवं शोध के केंद्र हैं, जहां पर केंद्र से प्राप्त वित्त से संचालित महाविद्यालय, विश्वविद्यालय एवं कई शोध संस्थान कार्यरत हैं। इन संस्थानों की आंतरिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए एवं इनमें शोध को बढ़ावा देने के लिए एक औपचारिक एकछत्र संरचना हेतु नया अनुदान प्रस्तावित है। भारतीय भाषाओं के मध्य ज्ञान साझा करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में परिकल्पित राष्ट्रीय अनुवाद मिशन हेतु भी इस बजट में उल्लेख किया गया है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत केन्द्रित, कौशल विकास आधारित एवं भारत को जगत गुरु बनाने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन हेतु आम बजट 2021 ने मार्ग प्रशस्त कर दिया है। विद्यालयी शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मॉडल के रूप में विद्यालयों का विकास होगा वहीं उच्च शिक्षण संस्थाओं के प्रत्यायन एवं वित्त पोषण हेतु भारतीय उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना एक युग परिवर्तनकारी कदम है। एकलव्य विद्यालयों से आदिवासी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विस्तार होगा वहीं सैनिक विद्यालयों के माध्यम से राष्ट्र प्रेम एवं भारतीयता का भाव पोषित होगा।