प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से -नियत और नीति बताती शिक्षा और स्वास्थ्य की योजनाएं

किसी भी सरकार की नियत और नीति को जानने, समझने के लिए उसकी शिक्षा और स्वास्थ्य की नीति को समझना जरुरी है। दिल्ली में यूं तो बहुत सी सरकारें रही किन्तु लाख आलोचना के बावजूद लोग अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप पार्टी की इस बात के लिए प्रशंसा करते नहीं थकते हैं कि उसने शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में बेहतर काम किया है। कोविड-19 के प्रकोप से निपटने में मोहल्ला क्लिनिक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। बच्चों की शिक्षा को लेकर जिस तरह का नवाचार, अधोसंरचना विकसित हुई है, उसकी भी प्रशंसा कई स्तरों पर हुई है।

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में जो कार्य किये हैं, वह भी धीरे-धीरे मिसाल बनते जा रही है। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दाई-दीदी क्लिनिक का शुभांरभ किया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस क्लिनिक का शुभारंभ करते हुए बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही। महिलाओं की स्थिति को रेखांकित करती है। उन्होंने कहा कि संकोच के कारण महिलाएं अपनी बीमारी को खुलकर नहीं बता पाती हैं। इस कारण से उनकी बीमारी का सही उपचार नहीं हो पाता। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्मदिवस पर पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में रायपुर, दुर्ग-भिलाई और बिलासपुर नगर निगम क्षेत्र के लिए दाई-दीदी स्पेशल क्लीनिक योजना प्रारंभ की गई है। इस क्लिनिक में डॉक्टर सहित सभी चिकित्सकीय स्टाफ महिलाएं होंगी और केवल महिलाओं का ही नि:शुल्क इलाज किया जाएगा।

हंसी मजाक और जोक में महिलाओं को बहुत मुखर, वाचाल और किस्सा कहानी गढऩे वाली बताया जाता है किन्तु हकीकत में महिलाएं अक्सर चुप रहती हैं। आधी मजूरी, आधा भोजन, आधी शिक्षा, आधा सुख, खराब सेहत के साथ बहुत कुछ दुख सहते भी वे अक्सर खामोश रहकर अपने परिवार के हितों के बारे में ही सोचती हैं। जब तक घर की महिला बुरी तरह से बीमार होकर बिस्तर न पकड़ ले तब तक वह अपनी बामारी के बारे में भी कुछ नहीं बताती। छोटा-मोटा सिरदर्द, शारीरिक पीड़ा, तो मानो उनके लिए आम बात है। प्रतिमाह होने वाले मासिक धर्म से निकलने वाले खून से बचाव के लिए भी सेनेटरी नैपकिन तक के लिए उसे आज तक जूझना पड़ रहा है। इस विषय को लेकर दो गंभीर फिल्में भी बन चुकी हैं।
कहने को तो हमारे देश में 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान में एक स्वतंत्र, समानतावादी और न्यायपूर्ण समाज की कल्पना की गई हो, किन्तु यर्थाथ में आज भी औरतों को पुरुषों के बराबर न्यूनतम मजदूरी भी प्राप्त नहीं होती। शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता सभी क्षेत्रों में हमें गैर बराबरी दिखाई देती है। कहने को हमारे यहां स्त्री को पिता की संपत्ति में अधिकार भी मिला है, किन्तु वह शायद ही इसे हासिल कर पाती है।
हमारे सामाजिक ताने-बाने में परिवार और आसपास के समाज जीवन के दायरे में रहकर बच्चे सबसे पहले पितृसत्ता को जानना शुरू करते हैं और लिंग के आधार पर उसका श्रम विभाजन का संस्कार, सोच विकसित होती है। अधिकांश घरों में बच्चे अपनी मां को पूरे परिवार को खिलाने, सुलाने के बाद ही खाते-सोते देखते हैं। वाचाल समझी जाने वाली माताएं अक्सर घर में चुप-चुप सी रहती हैं।

औरतों की इस सदियों की चुप्पी को तोडऩे में सबसे अहम भूमिका होती है उनके आर्थिक स्वावलंबन की। यदि औरतें आर्थिक रुप से स्वावलंबी होती हैं तो उनकी बहुत सारी परेशानियां, बेमतलब की चुप्पियां टूटती हैं। अब चाहे शहरीय महिलाएं हों या ग्रामीण सभी अपने-अपने स्तर पर आर्थिक स्वावलंबन का रास्ता तलाश रही हैं। सरकार की नीति और योजनाओं के जरिये लाखों लाख महिलाओं ने महिला स्वसहायता समूह बनाकर अपने आर्थिक स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त किया है। पद्मश्री फूलबासन बाई और शमशाद बेगम इसकी जीती जागती मिसाल हंै।

छत्तीसगढ़ सरकार ने महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और सेहत और आर्थिक स्वावलंबन के लिए बहुत सी योजनाएं प्रारंभ की है। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर जिन पांच योजनाओं को प्रारंभ किया गया है उनमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने और बच्चों व महिलाओं को कुपोषण से दूर कर पोषक बनाना प्रमुख है। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना, यूनिवर्सल पीडीएस स्कीम और मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय शामिल हैं।

प्रदेश के आदिवासी और वनांचल क्षेत्रों में अस्तपाल दूर होने के कारण लोगों को नियमित रूप से स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया नहीं हो पा रही थी। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का हाट-बाजारों में आना-जाना लगा रहता है। इसे देखते हुए सरकार ने यह निर्णय लिया कि हाट-बाजारों में ही मेडिकल टीम भेजकर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाए। मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जून से बस्तर में प्रारंभ किया गया। स्वास्थ्य विभाग की टीम, चिकित्सकों और आवश्यक उपकरणों सहित लोगों का इलाज करने के साथ ही मौके पर पैथोलॉजी जांच कर नि:शुल्क दवा प्रदान कर रही है। इस योजना को अब पूरे प्रदेश में लागू किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष से कम आयु के 37.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 15 से 49 वर्ष की 41.5 प्रतिशत महिलाएं एनिमिया से पीडि़त हैं। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार का सर्वाधिक जोर मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान पर है। जिसमें आंगनबाड़ी और पंचायतों के जरिये महिलाओं को सुपोषित करके मातृ मुत्यु दर को न्यूनतम स्तर पर लाने की कोशिश जारी है। दिल्ली सरकार की तर्ज पर ही मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना प्रारंभ की गई है। छत्तीसगढ़ के वनवासी और दूरस्थ अंचलों में जहां अभी तक नियमित अस्पताल की व्यवस्था नहीं है, वहां हर हाट बाजार को मेडिकल स्टाफ के साथ मोबाइल क्लिनिक के माध्यम से इलाज की व्यवस्था की गई है।

डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के माध्यम से गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले 56 लाख परिवारों को पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज तथा एपीएल परिवारों को जिनकी संख्या 9 लाख है उन्हें 50 हजार तक के मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इस पूरी योजना से छत्तीसगढ़ के 65 लाख परिवार बीमित होकर नि:शुल्क इलाज का लाभ ले सकते हैं। गंभीर बीमारी को देखते हुए मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना प्रारंभ की गई है। जिसमें मुख्यमंत्री की अनुशंसा पर 20 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाती है। अभी तक छत्तीसगढ़ के 355 परिवारों को यह सहायता मिल चुकी है। इसी तरह शहरीय क्षेत्रों की तंग और गरीब बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए मुख्यमंत्री शहरीय श्रम स्वास्थ्य योजना 2 अक्टूबर 2019 से प्रारंभ की गई है। मोहल्ला क्लिनिक की तर्ज पर ही यहां इलाज की व्यवस्था की जा रही है।
दरअसल, इस तरह की सरकारी योजनाएं बताने के पीछे मकसद यह है कि कोई सरकार अपने नागरिकों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सेहत और आर्थिक स्वावलंबन के प्रति कितनी सजग है, यह इससे पता चलता है। राजधानी की चमचमाती सड़कें, लाईट, फौव्वारे, बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं हो सकता है आधुनिक विकास के मानक हों, किन्तु जब तक किसी भी राज्य के नागरिक शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ और समृद्घ नहीं रहेंगे, ये समृद्घियां बेमानी हैं।

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