डिग्रियों का गोरखधंधा : विश्वविद्यालय के जरिये 17 राज्यों में 36000 फर्जी डिग्रियों का चला पता 

हिमाचल प्रदेश के एक निजी विश्वविद्यालय द्वारा चलाया जा रहा फर्जी डिग्रियों का गोरखधंधा उजागर होने से शिक्षा में निजी क्षेत्र की भूमिका पर फिर सवाल खड़े हुए हैं। फर्जी डिग्री की बिक्री और खरीद की उत्कंठा हमारे समाज में नैतिक मूल्यों के पराभव की भी दास्तान बताती है। यद्यपि जांच के प्रथम चरण में विश्वविद्यालय के जरिये 17 राज्यों में 36000 फर्जी डिग्रियों का पता चला है, लेकिन जब पूरा सच सामने आयेगा तो तस्वीर और डराने वाली होगी। जांचकर्ताओं ने इस संख्या को भ्रष्टाचार के सागर में तैरते हिमखंड की संज्ञा दी है जो पानी के ऊपर कम दिखायी देता है मगर पानी के नीचे लंबा-चौड़ा विस्तार लिये होता है जो घोटाले के व्यापक दायरे की ही पुष्टि करता है। दरअसल, हिमाचल के सोलन स्थित इस निजी विश्वविद्यालय से घोटाले का खुलासा होने के बाद विशेष जांच दल ने बरामद 55 हार्ड डिस्क में से अब तक केवल 14 को ही स्कैन किया है। निस्संदेह जब सभी हार्ड डिस्क जांच ली जायेंगी तो घोटाले के वास्तविक आकार का स्पष्ट खुलासा हो सकेगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को गुमनाम शिकायत करने पर इस घोटाले के खुलासे से राज्य के निजी विश्वविद्यालयों की कार्य संस्कृति पर सवाल उठे हैं। यह खुलासा कई सवालों को भी जन्म देता है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय परिसर में एक दशक से अधिक समय से गैरकानूनी गतिविधियों को चलाया जा रहा था। सवाल उठता है कि आखिर वह निगरानी व नियामक तंत्र इतने समय तक क्यों सोया रहा, जिसकी जिम्मेदारी निजी विश्वविद्यालयों की कारगुजारियों की निगरानी करना और अनुचित पर रोकथाम लगाना होता है। निस्संदेह, ऐसे मामलों में शिक्षा विभाग के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों की ओर भी उंगलियां उठेंगी कि उनकी नाक के नीचे शिक्षा के नाम पर एक दशक तक गोरखधंधा कैसे चलता रहा। क्यों नहीं समय रहते कार्रवाई की गई। क्यों शिक्षा की विश्वसनीयता से खिलवाड़ का खतरनाक खेल एक दशक तक चलता रहा।
निस्संदेह सरस्वती के मंदिर में अवैध कारोबार का यह घोटाला विचलित करने वाला है। कुछ मेहनती विद्यार्थी अपना जीवन होम करके तथा माता-पिता की खून-पसीने की कमाई खर्च करके जो डिग्री हासिल करते हैं, उसे समाज में आपराधिक सोच के लोग चंद रुपयों से चुटकियों में जुटा लेते हैं। सवाल उन संस्थानों और विभागों का भी है जहां इन फर्जी डिग्री हासिल करने वाले लोगों ने नियुक्तियां पायी हैं। यह सवाल भी व्यथित करता है कि क्यों समाज में फर्जी डिग्रियों की मांग में लगातार वृद्धि हुई है। बिना प्रामाणिक शिक्षा और मूल्यांकन के ऐसी डिग्रियां हासिल करना उन क्षेत्रों के लिये घातक है जहां विषय की विशेषज्ञता की प्राथमिकता होती है। जिसके लिये राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। निस्संदेह इस घाटाले का खुलासा हमारी शिक्षा प्रणाली की विसंगतियों और विद्रूपताओं को ही उजागर करता है। सख्त और बिना किसी राजनीतिक दबाव के जांच करने पर कई अन्य निजी विश्वविद्यालयों में ऐसे खुलासे हो सकते हैं, जिनको लेकर गाहे-बगाहे मीडिया में खबरें तैरती भी रहती हैं। यह अच्छी बात है कि विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ताओं की 192 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की गई है जो कि घोटाले के दायरे में आती है। मनी लांड्रिंग के आरोपों के बीच इस घोटाले में हुई कार्रवाई को देश में किसी भी निजी शैक्षणिक संस्थान के विरुद्ध उठाये गये सबसे बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। निस्संदेह इस पर्वतीय राज्य में ही नहीं, आसपास के राज्यों में भी उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्रों की विश्वसनीयता को बहाल करने में लंबा वक्त लगेगा। उन पर पारदर्शी व्यवस्था के लिये दबाव बढ़ेगा। इसके बावजूद इस विश्वविद्यालय में पढऩे वाले छात्रों, विभिन्न संकायों के शिक्षकों और कर्मचारियों के हितों की भी अनदेखी न हो, क्योंकि सभी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस बाबत पूरे देश में निगरानी तंत्र विकसित करने की जरूरत है ताकि मेहनतकश व प्रतिभाओं के भविष्य से खिलवाड़ रोका जा सके। सख्ती से ही भारतीय शिक्षातंत्र की विश्वसनीयता बहाल की जा सकती है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *