मुख्यमंत्री के रौद्र रूप से जनता में आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता

कृष्णमोहन झा
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गणना देश के उन राजनेताओं में प्रमुखता से होती है जो किसी भी मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते समय कभी भी अपनी भाषा पर नियंत्रण नहीं खोते। मैंने उन्हें कई बार अधिकारियों पर नाराज़ होते हुए भी देखा है परन्तु उन्होंने मुझे ऐसा कोई प्रसंग याद नहीं आ रहा है जब उन्होंने अपना आपा खो दिया हो। अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार के दौरान भी वे जब विपक्ष पर आक्रमण करते हैं तब भी शब्दों की मर्यादा का वे पूरा ध्यान रखते हैं। बोलते समय उनकी जुबान कभी नहीं फिसलती। वे जो कुछ भी कहते हैं उस पर हमेशा अडिग रहते हैं। उनके किसी बयान पर कभी विवाद की स्थिति निर्मित होने पर वे कभी यह भी नहीं कहते कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ प्रस्तुत किया गया है। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि वे कभी उत्तेजित नहीं होते परंतु क्रोध की चरम स्थिति में भी उन्होंने भाषा की मर्यादा का सदा सर्वदा पूरा ध्यान रखा है। अपने सुदीर्घ राजनीतिक जीवन में शिवराज सिंह चौहान ने राजनेताओं के बीच अपनी जो विशिष्ट पहचान बनाई हैप्र उसमें उनकी इस स्वभाव गत विशेषता का महत्वपूर्ण योगदान है । उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ लगातार दो दो विधानसभा चुनाव जीत कर
सत्ता में शानदार वापसी की है।वे प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अनेक कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। उन्होंने सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में जो अपार यश और सफलता अर्जित की है वह किसी भी राजनेता के मन में अहंकार का भाव जगाने के लिए पर्याप्त है परंतु मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद को हमेशा ही अहंकार से कोसों दूर रख कर यह साबित कर दिया है कि राजनीति उनके लिए प्रदेश की सात करोड़ जनता की विनम्र सेवा का एक माध्यम मात्र है।
कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश में समाज विरोधी तत्वों ने शिवराज सिंह चौहान की इस सहृदयता, संवेदनशीलता, परदुखकातरता और विनम्रता को उनकी कमजोरी मान लिया है इसलिए विगत कुछ माहों से प्रदेश में आपराधिक गतिविधियों की जैसे बाढ़ सी आ गई है। चूंकि विगत 10 माहों से राज्य में मुख्य मंत्री पद की बागडोर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में ही है इसलिए मुख्यमंत्री यह तर्क देकर अपना बचाव करने की स्थिति में भी नहीं हैं कि आपराधिक तत्वों का यह दुस्साहस पिछली कमलनाथ सरकार की देन है। मुख्यमंत्री को अब यह चिंता सताने लगी है कि अगर उनकी सरकार आपराधिक प्रवृत्ति के समाज विरोधी तत्वों को उन्हीं की भाषा में सबक सिखाने का समय आ गया है इसीलिए शायद मुख्यमंत्री माफियाओं के लिए उस भाषा का करने का फैसला किया जिसने सबको अचरज में डाल दिया। लेकिन उससे बड़े अजरज की बात यह है कि मुख्यमंत्री की उस भाषा का भी अपराधी तत्वों पर कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हाल में ही अपने एक बयान में मुख्य मंत्री चौहान पर परोक्ष चुटकी लेते हुए कहा है कि प्रदेश में माफिया तत्वों के को मुख्यमंत्री द्वारा दी गई चेतावनी महज जुमले बाजी साबित हो रही है। माफिया न तो गड़ रहे हैं,न टंग रहे हैं और न निपट रहे हैं। गौरतलब है कि कमलनाथ का यह बयान आने के एक दिन पूर्व ही माफिया तत्वों द्वारा प्रदेश में दो स्थानों पर सुरक्षा कर्मियों पर प्राणघातक हमलों की वारदातों ने सारे प्रदेश को झकझोर डाला था। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में किसी भी क्षेत्र में माफिया तत्वों को नेस्तनाबूद करने के लिए दृढ़ संकल्प ले चुके हैं और उनकी इस दृढ़ संकल्प पर संदेह व्यक्त करना भी उचित नहीं होगा परंतुयह सवाल तो स्वाभाविक है कि प्रदेश में माफिया तत्व आखिर इतने दुस्साहसी कैसे हो गए कि मुख्यमंत्री की असाधारण रूप से कठोर चेतावनी से भी किंचित मात्र भी भयभीत नहीं हैं।वे रोज किसी इलाके में नई खौफनाक वारदात को अंजाम देकर सरकार को तुम डाल डाल तो हम पात-पात की कहावत की याद करा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री भी यह समझ पाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं कि माफिया तत्वों के मन में भय पैदा करने के लिए आखिर कौन सी भाषा का प्रयोग किया जाए । मुख्यमंत्री को बिना किसी विलंब के अब यह साबित करना ही होगा कि गरजने वाले बादल कभी बरस भी सकते हैं । अगर उन्होंने अब कोई देरी की तो उनके मजबूत इरादों पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। फिर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी यह दावा करने से नहीं चूकेंगे कि उनके अंदर माफियाओं पर अंकुश लगाने की इच्छा शक्ति वर्तमान मुख्यमंत्री से कहीं अधिक थी।प्रदेश में जिस तरह रोजाना ही किसी न किसी क्षेत्र से माफिया तत्वों के दुस्साहस की खौफनाक घटनाएं सामने आ रही हैं उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके मन से कानून का भय पूरी तरह समाप्त हो चुका है।यह नि:संदेह चिंता जनक स्थिति है । ऐसे में प्रदेश की जनता भी अब यह सोचने पर विवश हो चुकी है कि जब मुख्यमंत्री की चेतावनी का भी माफियाओं पर कोई असर नहीं हो रहा है तो आखिर इस मर्ज का इलाज क्या है। विगत दिनों जिस दिन ग्वालियर में जलालपुर अंडरब्रिज के समीप चंबल नदी 6 ट्रैक्टरों में रेत भरकर लाए रहे माफिया के लोगों को पुलिस द्वारा रोके जाने पर उन्होंने न केवल पुलिस कर्मियों पर गोलियां चलाई बल्कि उन्हें ट्रैक्टर से कुचलने का प्रयास भी किया। अन्तत: पुलिस कर्मियों की प्राण रक्षा हेतु ग्रामीणों ने मोर्चा संभाला और माफिया के लोगों को खदेड़ा। इनमें से 8 लोगों की गिरफ्तारी हो गई। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि पिछले 15 सालों से सरकार ने चंबल नदी से रेत निकालने पर प्रतिबंध लगा रखा है परंतु रेत माफिया यहां बेखौफ होकर खनन में जुटा रहता है। पिछले कुछ माहों में ग्वालियर, दतिया, श्योपुर और मुरैना में रेत माफिया के लोग यहां उनको रोकने वाले पुलिस और वन विभाग केक्षकर्मचारियों पर हमले का दुस्साहस कर चुके हैं। इसी तरह की एक वारदात देवास जिले की पुंजापुरा रेंज के रतनपुर जंगल क्षेत्र में हुई जहां शिकारियों ने उनका पीछा करने वाले निहत्थे वनरक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी।इस वारदात के बाद वन मंत्री विजय शाह ने घोषणा की कि सरकार ने अवैध खनन रोकने के लिए तैनात कर्मचारियों को शस्त्र लाइसेंस प्रदान करने का फैसला किया है। प्रदेश में माफिया तत्वों के दुस्साहस का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि गत दिवस रेत माफिया से जुड़े लोग भिंड में राज्य के नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री ओपीएस भदोरिया के मेहगांव स्थित बंगले के बाहर फायरिंग की वारदात को अंजाम देने के बाद भाग निकले यद्यपि पुलिस ने रात में ही आरोपियों को पकडऩे में कामयाबी हासिल कर ली। मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में माफिया तत्वों द्वारा पुलिस और वन कर्मियों को लगातार निशाना बनाए जाने से चिंतित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस अधिकारियों को माफिया तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के निर्देश तो दिए हैं परंतु यह स्थिति नि:संदेह चिंता जनक है कि मुख्यमंत्री के इतने सख्त तेवरों के बावजूद माफिया राज बेखौफ होकर सारे प्रदेश में आए दिन सरकार को चुनौती देता नजर आ रहा है।अब तो ऐसा प्रतीत होने रहा है कि माफिया सरगनाओं के लिए मुख्यमंत्री की कठोर से कठोर चेतावनी भी मामूली झिडक़ी से अधिक कुछ नहीं है।
आज से लगभग दस माह पूर्व मध्यप्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन के फलस्वरूप शिवराजसिंह चौहान के हाथों में मुख्य मंत्री पद की बागडोर आई थी तब राज्य में कोरोना
के प्रकोप को नियंत्रित करना उनकी पहली जिम्मेदारी थी।उस समय मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल का गठन स्थगित कर कोरोना को हराने के लिए जो अद्भुत सूझ-बूझ का प्रदर्शन किया उसकी भी सर्वत्र भूरि भूरि प्रशंसा की गई।उस समय माफिया तत्वों को भी आवागमन पर लगे प्रतिबंधों के कारण मजबूरी में अपनी अवैध गतिविधियों को विराम देना पड़ा परंतु कोरोना के कमजोर पडऩे के साथ ही जब उक्त प्रतिबंध शिथिल किए गए तो माफियाओं की अवैध गतिविधियों में कुछ माहों के अंदर इतनी तेजी आ गई कि उन्हें खबरदार करने के लिए मुख्यमंत्री को ऐसी कठोर शब्दावली का प्रयोग करने के लिए विवश होना जिसका मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने पहले कभी प्रयोग नहीं किया। प्रदेश की जनता को उनके द्वारा ऐसी शब्दावली के प्रयोग पर आश्चर्य जरूर हुआ परंतु उस आश्चर्य में भी एक अलग तरह की खुशी का भाव छुपा हुआ था। प्रदेश की बेटियों और महिलाओं को भी आशा की एक किरण दिखाई देने लगी कि माफिया तत्वों को नेस्तनाबूद करने के बाद मुख्यमंत्री निश्चित रूप से प्रदेश में बेटियों और महिलाओं के सम्मान और अस्मिता की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करेंगे परंतु जिस तरह शिवराज को माफिया राज चुनौती देता नजर आ रहा है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री को अपना तीसरा नेत्र खोलने के लिए विवश होना ही पड़ेगा।

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