अनकहा सुनना : बेटे को अच्छा शासक बनाने के मकसद

गोपाल मिश्रा
बहुत समय पहले चीन के एक राजा ने अपने बेटे को अच्छा शासक बनाने के मकसद से एक जेन मास्टर के पास भेजा। जेन मास्टर ने कुछ दिन अपने साथ रखने के बाद युवराज को एक साल के लिए जंगल में अकेले रहने के लिए भेज दिया। जब युवराज लौटे तो मास्टर ने पूछा, ‘बताओ तुमने जंगल में क्या सुना ’ ‘मैंने कोयल की कूक सुनी, नदियों की कल-कल सुनी, पत्तियों की सरसराहट सुनी, मधुमक्खियों की गुंजन सुनी, झींगुरों का शोर सुना, हवा की धुन सुनी। जब युवराज ने अपनी बात पूरी कर ली तब मास्टर बोले, ‘अब तुम एक बार फिर जंगल जाओ और जब तक तुम्हें कुछ नयी आवाजें न सुनाई दें तब तक मत लौटना।’ एक साल जंगल में बिताने के बाद युवराज अपने राज्य को लौटना चाहता था, पर मास्टर की बात को टाल भी नहीं सकता था, इसलिए वह बेमन ही जंगल की ओर बढ़ चला। कई दिन गुजर गए पर युवराज को कोई नयी आवाज़ नहीं सुनाई दी। उसने निश्चय किया कि अब वह हर आवाज़ को बड़े ध्यान से सुनेगा। फिर एक सुबह उसे कुछ अनजानी सी आवाजें हल्की-हल्की सुनाई देने लगीं। कुछ दिनों बाद वह जेन मास्टर के पास वापस लौटा और बोला, ‘पहले तो मुझे वही ध्वनियां सुनाई दीं जो पहले देती थीं, लेकिन एक दिन जब मैंने बहुत ध्यान से सुनना शुरू किया तो मुझे वो सुनाई देने लगा जो पहले कभी नहीं सुनाई दिया था।
मुझे कलियों के खिलने की आवाज सुनाई देने लगी, धरती पर पड़ती सूर्य की किरणों, तितलियों के गीत और घास द्वारा सुबह की ओस पीने की ध्वनियां सुनाई देने लगीं।’ यह सुनकर जेन मास्टर बोले, ‘अनसुने को सुनने की क्षमता होना एक अच्छे राजा की निशानी है, क्योंकि जब कोई शासक अपने लोगों के दिल की बात सुनना सीख लेता है, बिना उनके बोले, उनकी भावनाओं को समझ लेता है, केवल वही अपनी प्रजा का विश्वास जीत सकता है, कुछ गलत होने पर उसे समझ सकता है और अपने नागरिकों की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरी कर सकता है।’ दोस्तो! अगर हमें अपनी फील्ड का लीडर बनना है तो हमें भी वह सुनना-सीखना चाहिए जो नहीं कहा गया है। यानी हमें उस युवराज की तरह बिलकुल सतर्क होकर अपना काम करना चाहिए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *