ग्रीन हाइड्रोजन बचाएगी पृथ्वी की जलवायु

मुकुल व्यास
मनुष्य की गतिविधियों की वजह से हो रहा कार्बन उत्सर्जन पृथ्वी की जलवायु के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है। इस समस्या का एक ही समाधान है और वह है दुनिया में कार्बन बहुल ईंधनों का प्रयोग यथासंभव कम करना। इसके लिए हमें ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाना पड़ेगा।

दुनिया में उत्पादित ऊर्जा में सौर,पवन और लहर ऊर्जा का योगदान अवश्य बढ़ा है लेकिन इनकी क्षमताओं का भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है। अक्षय ऊर्जा के नये स्रोतों में वैज्ञानिकों का ज्यादा ध्यान ग्रीन हाइड्रोजन की तरफ गया है क्योंकि यह हमें जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकती है।
ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन कार्बन रहित ऊर्जा स्रोतों की मदद से होता है। ब्रिटेन और जर्मनी में रेल जैसे बड़े ट्रांसपोर्ट हाइड्रोजन से चलाने की कोशिश शुरू हुई है लेकिन स्वच्छ और ग्रीन हाइड्रोजन प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है। जर्मनी ने स्वच्छ ऊर्जा के लिए अपने विशेष पैकेज में एक बड़ा हिस्सा ग्रीन हाइड्रोजन के लिए आवंटित किया है। यूरोप के कुछ देश ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए इलेक्ट्रोलिसिस संयंत्रों की स्थापना पर पैसा लगा रहे हैं।
ईंधन के रूप में हाइड्रोजन की क्षमता के बारे में पिछले कई दशकों से चर्चा हो रही है लेकिन इसकी टेक्नोलॉजी व्यावसायिक रूप नहीं धारण कर पाई। ग्रीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी को बड़े पैमाने पर अपनाने में कई दिक्कतें हैं क्योंकि हाइड्रोजन ईंधन को ग्रीन बने रहने के लिए ऐसी ऊर्जा चाहिए, जिसका नवीनीकरण किया जा सके। इसका अर्थ यह हुआ कि पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभक्त करने वाले इलेक्टोलिसिस संयंत्रों को चलाने के लिए अक्षय ऊर्जा उत्पादन का विस्तार करना होगा। अभी हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा प्रचलित तरीके में प्राकृतिक गैस का प्रयोग किया जाता है जो कि एक जीवाश्म ईंधन है। इस विधि में प्राकृतिक गैस भाप के साथ क्रिया करके हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड उत्पन्न करती है।
चूंकि इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है, इस विधि को ग्रीन नहीं कहा जा सकता। इस तरह बनने वाली हाइड्रोजन ‘ग्रे हाइड्रोजन’ कहलाती है। हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए भले ही कोई भी तरीका अपनाया जाए,सबसे बड़ी दिक्कत उसके स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट की है। इसके अलावा और भी समस्याएं हैं। चूंकि यह गैस कुदरती रूप में उपलब्ध नहीं है, इसे बनाने के लिए भी ऊर्जा चाहिए। एक और बड़ी परेशानी यह है कि यह सूक्ष्म से सूक्ष्म लीक से भी बाहर निकल सकती है। साथ मे यह बहुत विस्फोटक भी है।
इन कठिनाइयों के बावजूद ग्रीन हाइड्रोजन के प्रति लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ है। यूरोप, पश्चिम एशिया और एशिया में अधिक से अधिक देश नये ईंधन को अपना रहे हैं। जापान में फुकुशिमा के निकट ग्रीन हाइड्रोजन का एक बड़ा संयंत्र स्थापित किया गया है। यह दुनिया के बड़े संयंत्रों में से है। पश्चिम एशिया भी हाइड्रोजन उत्पादन के लिए तत्पर है। सऊदी अरब में निर्माणाधीन नीयोम शहर को ऊर्जा ग्रीन हाइड्रोजन से मिलेगी। इसके लिए एक अमेरिकी कंपनी पिछले चार सालों से एक संयंत्र का निर्माण कर रही है। इस संयंत्र को चलाने के लिए बिजली पवन और सौर ऊर्जा से मिलेगी।
ग्रीन हाइड्रोजन पर काम करने के साथ-साथ वैज्ञानिक सौर ऊर्जा जैसे मौजूदा नवीकरणीय स्रोतों की क्षमता बढ़ाने की भी कोशिश कर रहे हैं। हाल के दशकों में सोलर सेलों की लागत कम हुई है और उनकी कार्यकुशलता भी बढ़ी है। लेकिन अपारदर्शी होने के कारण इनका विविध इस्तेमाल करना या दूसरे पदार्थों में सम्मिलित करना संभव नहीं हो पाता। वैज्ञानिक अब नयी पीढ़ी के ऐसे सोलर सेल बनाने की चेष्टा कर रहे हैं, जिन्हें खिड़कियों, इमारतों और मोबाइल फोनों में फिट किया जा सके। कोरिया की इंचियोन नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जूंडोंग किम और उनके सहयोगियों ने एक ऐसे सोलर सेल का आविष्कार किया है जो पूरी तरह से पारदर्शी है। जर्नल ऑफ पॉवर सोर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में उन्होंने इस आविष्कार का ब्योरा दिया है। प्रो. किम के अनुसार उनके पारदर्शी सोलर सेल का मानव टेक्नोलॉजी में विविध प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।
पारदर्शी सोलर सेल का विचार नया नहीं है। लेकिन कोरियाई रिसर्चरों ने इस विचार को व्यवहार में बदलते हुए एक महत्वपूर्ण आविष्कार किया है। फिलहाल सोलर सेलों को पारदर्शी बनाने के लिए सेमीकंडक्टर परतों का प्रयोग किया जाता है। ये परतें सूरज की रोशनी को कैद करके उन्हें बिजली में बदलती हैं। रिसर्चरों ने पारदर्शी सेल में सेमीकंडक्टर के लिए दो नये पदार्थों, टाइटेनियम ऑक्साइड और निकल ऑक्साइड को चुना। टाइटेनियम ऑक्साइड अपने उत्कृष्ट विद्युतीय गुणों के अलावा पर्यावरण के अनुकूल है और एक अविषाक्त पदार्थ है। यह पदार्थ अल्ट्रा वॉयलेट प्रकाश को सोख सकता है। प्रकाश के हिस्से को हम कोरी आंख से नहीं देख पाते। यह पदार्थ दृश्य प्रकाश को गुजरने देता है।
सेमीकंडक्टर के रूप में चुना गया दूसरा पदार्थ निकल ऑक्साइड अपनी उच्च प्रकाशीय पारदर्शिता के लिए जाना जाता है। निकल पृथ्वी पर बहुतायत में पाया जाता है और उसकी ऑक्साइड का निर्माण आसानी से किया जा सकता है। इसके अलावा पर्यावरण अनुकूल सेल बनाने के लिए निकल ऑक्साइड उत्तम पदार्थ है। रिसर्चरों ने नये सोलर सेल की कार्यकुशलता परखने के लिए कई परीक्षण किए और नतीजे बहुत उत्साहवर्धक रहे। सूरज की रोशनी को बिजली में बदलने में इनकी कुशलता 2.1 प्रतिशत रही। इन्होंने प्रकाश के स्पेक्ट्रम के सिर्फ एक छोटे हिस्से को लक्षित किया। इसके बावजूद सेल ने बहुत अच्छा काम किया। सेल ने मंद रोशनी में भी अच्छा प्रदर्शन किया। सेमीकंडक्टर की परतों से 57 प्रतिशत दृश्य प्रकाश के गुजर जाने से सेल पारदर्शी दिखने लगा।
रिसर्चरों ने अंतिम प्रयोग में दिखाया कि इस डिवाइस से एक छोटी मोटर भी चलाई जा सकती है। पारदर्शी सेल अभी प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन रिसर्च के नतीजों से पता चलता है कि इस तरह के सेल व्यावहारिक हैं और भविष्य में इनकी कार्यकुशलता बढ़ाई जा सकती है।

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