बस्तर प्रवास के दौरान राज्यपाल उइके को भेंट की जायेगी धुरवा समाज की पहचान बंदी पाटा साड़ी

  सूती धागे से तैयार साड़ी में किया जाता है प्राकृतिक रंगों का उपयोग
जगदलपुर। राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उइके को बस्तर प्रवास के दौरान बंदी पाटा साड़ी भेंट की जाएगी। उल्लेखनीय है कि सुश्री उइके बुधवार को दो दिवसीय बस्तर प्रवास पर रहेंगी। वे यहां ’भूमकाल दिवस’ पर आयोजित विभिन्न आमसभा में शामिल होंगी। राज्यपाल के प्रवास के दौरान तोकापाल ब्लॉक के कोयपाल निवासी बुनकर  सोनाधर दास द्वारा बनायी गयी बस्तर की परम्परागत ’बंदी पाटा’ साड़ी धुरवा समाज के प्रतिनिधियों के द्वारा भेंट की जाएगी।
क्या है बंदी पाटा
बस्तर के वीर योद्धा गुंडाधुर ने बंदी ओलना (हाफ जैकेट) वस्त्र पहन कर, बंदी तुआल (गमछा) को कंधे में रख कर एवं सर पर टेकरा तुआल पगड़ी धारण कर युद्ध में प्रवेश किया था। बंदी पाटा के नाम से यह कपड़ा जाना जाता है। बस्तर में इसकी एक अलग पहचान है हर समाज के लिए अलग-अलग कपड़े बनाया जाता है जिसमें उस समाज की कुछ रीति-रिवाज होती है। बंदी पाटा धुरवा समाज का प्रमुख वस्त्र है यह महिलाओं के लिए सबसे महंगा एवं मान्यता से परिपूर्ण है। बंदी पाटा साड़ी की लंबाई 5 मीटर चैड़ाई में 46 इंच होती है, इसके बॉर्डर में लाल रंग की धागे से कुम्भ (मंदिर का कलश) बनाया जाता है उसके पश्चात छोटी-छोटी बूंदें एवं बीच में जरी फूल बनाया जाता है और बंदी पाटा के सामने आंचल बना होता है। मुख्यत: धुरवा समाज के महिलाएं यह कपड़ा पहनती हैं। यह कपड़ा धुरवा समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की पहचान है। प्राय: पूजा स्थल विवाह स्थल एवं सामाजिक सम्मेलन आदि में पहना जाता है एवं बंदी पाटा वस्त्र धारण कर महिलाएं गीत गाते हुए एवं नृत्य करती हैं। बस्तर में जिस प्रकार भूमि की एक पट्टा होती है उसी तरह धुरवा समाज में भी महिलाओं के लिए बंदी पाटा होती है, इसकी कीमत वर्तमान में लगभग 10 हजार रुपए है। इसमें उपयोग किए गए धागे बस्तर की घने वनों के बीच में पाए जाने वाले साजा वृक्ष की छाल से रंगा हुआ लाल रंग एवं कपास से निकाला हुआ सूत बुनकर द्वारा इस कपड़े को 15 से 20 दिन में तैयार किया जाता है। इस वस्त्र में किसी भी प्रकार का रासायनिक रंगों का उपयोग नहीं होता है। यह प्राकृतिक होने से शरीर में किसी भी प्रकार का हानिकारक नहीं होता, यह अत्यंत टिकाऊ एवं शोभा मान्य होती है। बंदी पाटा बस्तर अंचल में अपनी संस्कृति में एक अलग भूमिका निभाती है इसी प्रकार बस्तर में निवासरत अनेक जनजातियों के लिए अलग-अलग वस्त्र तैयार किया जाता है जिसका एक अलग इतिहास होता है।
बंदी पाटा वस्त्र पनका समाज द्वारा तैयार किया जाता है। वर्तमान में ऐसे पारंपरिक वस्त्र संस्कृति विलुप्ती की कगार में है। इन परम्परागत वस्त्र संस्कृति का संरक्षण एवं विकास जिला हाथकरघा कार्यालय जगदलपुर के द्वारा किया जा रहा है।

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