प्रेमजीवी, ल_जीवी और बाजारजीवी : संस्कृति की रक्षा में वेलेंटाइन डे का बॉयकॉट करना
सौरभ जैन
वे संस्कृति रक्षक दल के प्रमुख हैं। युवाओं के सिर से पश्चिम के नशे को उतारने की स्थानीय फ्रेंचाइजी उन्हीं के पास है। हर बरस फरवरी लगते ही भीतर से वे जोश से भर उठते हैं। गुलाब दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने क्षेत्रीय बैठक बुलाई है। उनकी इस बैठक में बड़ी संख्या में युवाओं को बुलाया गया। इस बैठक का एजेंडा संस्कृति की रक्षा में वेलेंटाइन डे का बॉयकॉट करना था।
इस बरस बेरोजगारी बढऩे से बैठक में युवाओं की संख्या भी बढ़ गई। कुछ युवा नौकरी खोने से प्रेम से भी हाथ धोने के चलते उपस्थित थे। दल प्रमुख ने इस हफ्ते के बहिष्कार पर ओज पूर्ण भाषण देना शुरू किया, पूरी सभा जोश से भर उठी। एक क्षण तो ऐसा लग रहा था मानो ये युवा विवाह के विचार का ही परित्याग न कर दें। संस्कृति को बचाने की साप्ताहिक रूपरेखा तय हो चुकी थी। मतदान के दिन 11 बजे उठने वाली पीढ़ी संस्कृति की रक्षा में सुबह 8 बजे ही सडक़ों पर निकल गई।
देसी गुलाब बेचने वाले एक आत्मनिर्भर फूल वाले का जब मंडली से सामना हुआ तो उसके माथे से पसीना छूट गया। संस्कृति वॅारियर्स ने उसे विश्वास दिलाया कि आज उनकी लड़ाई फूल बेचने वाले से नहीं बल्कि खरीदने वालों से है। अचानक ही एक वॉरियर ने गुलाब के भाव पूछ लिए। डरे-सहमे फूल वाले ने कीमत बीस रुपया बतलाई। इस पर वॉरियर्स ने डरशास्त्र का सिद्धांत और आपदा में अवसर का गुर समझाया।
इसके बाद संस्कृति की रक्षा करने वाले फूल देने-लेने वालों पर नजर रखते तो फूल बेचने वाले प्रेमियों के डर को व्यापार में बदल लेते। फूल बेचने वालों ने फूल की कीमतें बढ़ा दीं। बीस का गुलाब दो सौ से पांच सौ, हजार तक का शिखर चूम चुका था। यह सब फूल बेचने वाले और संस्कृति रक्षक दल के गठबंधन का परिणाम था। वे वहां डराते और ये यहां भाव बढ़ा देते। पहले ही दिन प्रेमियों की जेबों को निचोड़ दिया गया।
व्हाट्सएप पर बॉयकॉट वेलेंटाइन वीक करने वाले दुकानदारों ने अपनी दुकानें चॉकलेट, टेडीबियर से सजा रखी थीं। वे लिमिटेड स्टॉक का बहाना बनाकर अधिक कीमत में सामान बेचते और फिर फेसबुक पर संस्कृति बचाने का ज्ञान देने से चूकते भी नहीं थे। हमारी संस्कृति क्या हो, यह बाजार तय करता है।
प्रेमजीवी के लिए प्रेम सप्ताह में ल_जीवी आपदा है और ल_जीवी के लिए प्रेमजीवी एक अवसर। प्रेमजीवी एक दफा ल_जीवी से बच भी जाये किंतु बाजार की मार से नहीं बच सकता। ल_जीवी के भय से मुक्त होकर प्रेमजीवी किसी रेस्तरां में चले भी जाएं तो पिज्ज़ा की कीमतें प्यार करने से रोक देती हैं। प्रेम पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों-सा मध्य वर्गीय पहुंच से बाहर जा रहा है। अब तो प्रेम भी अमीरों की वस्तु बन कर रह गया है। प्रेम की अनिवार्य आवश्यकता पैसा है, गरीब आदमी सिर्फ देश से प्यार कर सकता है, किसी लडक़ी से नहीं। आज मार्क्स होते तो कहते—दुनिया के सभी चॉकलेटजीवी एक हो जाओ, तुम्हारे पास खोने के लिए सिर्फ चॉकलेट है, पर पाने के लिए पूरा प्रेम है।