किसानी सरोकारों के निर्भीक अग्रदूत
इन्द्रजीत सिंह
यह अनायास ही नहीं है कि देश में चल रहे किसान आंदोलन का संचालन करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने चौ. छोटू राम की जयंती 16 फरवरी यानी वसंत पंचमी का दिन देशभर में मनाने का आह्वान किया है। चौ. छोटू राम अपने समय के उत्तर भारत के जाने-माने और लोकप्रिय किसान नेता रहे हैं। यूनियनिस्ट पार्टी या जमींदारा लीग के नाम से किसानों को संगठित करने, उन्हें लूट व शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए कई दशकों तक उन्होंने जो राजनीतिक हस्तक्षेप किया, वह इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
देश के विभाजन से पूर्व संयुक्त अविभाजित पंजाब की प्रोविंशियल असेंबली में महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्री के तौर पर जो कानून उन्होंने बनवाए, उनकी बदौलत सूदखोरों और साहूकारों के कर्ज के शिकंजे में फंसे करोड़ों किसानों और उनकी आगे की पीढिय़ों को निश्चित तौर पर कुछ मुक्ति मिली। तत्कालीन पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने सूदखोरों द्वारा अनाज की मनमानी लूट को रोकने के लिए जो सबसे बड़ा प्रगतिशील कदम उठाया, वह था कृषि उत्पाद मार्केट कमेटी एक्ट 1939 के रूप में सामने आया। इसके अंतर्गत मंडियों का जाल बिछाया गया। इस प्रकार मोल और तोल की शुरुआत हुई। इसके अलावा तमाम तरह की कटौतियों पर भी पाबंदी लगा दी गया जो किसान की फसल में से काटी जाती थी।
असल में तो तमाम खामियों के बावजूद इस व्यवस्था को सुधारने की बजाय मोदी सरकार तीन कानूनों को थोप कर इस व्यवस्था को खत्म करना चाहती है। कृषि उत्पादों के व्यापार में कारपोरेट की दखल किये जाने की सूरत में मंडी प्रणाली समाप्त हो जाने की आशंका है। यह एक प्रमुख पहलू है, जिसकी वजह से आज चौ. छोटू राम की प्रासंगिकता इतने बड़े फ़लक पर उभर कर आई है।
तत्कालीन पंजाब सरकार ने साहूकार वर्गों की तीखी नाराजगी और विरोध के बावजूद कानून बनाकर कर्जदार किसान की जमीन, घर, पशु आदि की कुर्की को गैरकानूनी बना दिया था। यही नहीं, बल्कि जो जमीनें पहले कुर्क हो चुकी थीं, उन्हें भी कानून के माध्यम से किसानों को वापिस करवा दिया जाना मामूली कदम नहीं था। एक अन्य कानून के द्वारा काश्तकारों की भूमि पर गैर काश्तकार के नाम स्थानांतरित किए जाने पर कानूनी रोक लगा दी गई।
छोटू राम ने किसानों के अलावा मजदूरों के लिए भी काम के घंटे निश्चित करने और अवकाश दिये जाने जैसी सामाजिक सुरक्षा का अधिकार भी दिया। कमेरे वर्गों के लिए इन्हीं कल्याणकारी कदमों के लिए उनके नाम से पहले दीनबंधु लगाया जाने लगा था।
भाखड़ा डैम का निर्माण करवाना एक और बड़ा कदम था जो मंत्री रहते हुए उन्होंने उठाया। 1945 में अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने भाखड़ा डैम के निर्माण हेतु तमाम तरह के प्रशासनिक व आर्थिक अवरोधों को दूर किया।
उस दौर में सांप्रदायिकता का कैंसर बड़े विकार के रूप में देश की जनता को हिंदू-मुस्लिम में बांट रहा था। चौधरी साहब दोनों ही तरह की फिरकापरस्ती और जात-पात की समस्या से जूझते हुए किसानों को लगातार सचेत करते हुए उन्हें एकजुट रखने में काफी हद तक सफल रहे। यूनियनिस्ट पार्टी के मंच पर वह हिंदू -मुस्लिम-सिख समुदाय के किसानों को लामबंद करते हुए कहते थे कि सांप्रदायिकता जनता के जागृत होने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। वह कहते थे कि फिरकापरस्ती एक क्लोरोफॉर्म का फोहा है जो किसानों को जागते ही सुंघा दिया जाता है और वह फिर से बेहोश हो जाते हैं।
चौ. छोटू राम उस दौर के जाने-माने शायर इक़बाल साहब की शायरी के कायल थे। वह इक़बाल द्वारा मजलूमों के लिए लिखे गए एक अति लोकप्रिय शेर को अक्सर दोहराते थे-
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले,
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
पिछले ढाई महीने से देश में चल रहे अभूतपूर्व किसान आंदोलन के संबंध में चौ. छोटू राम के किरदार का उभरना एक तरह से स्वाभाविक ही है। वे कहते थे कि जब कोई और तबका सरकार से नाराज होता है तो वह कानून तोड़ता है पर जब किसान नाराज होता है तो वह सरकारें बदलने का काम भी करता है।