कोंडागांव में सात सौ एकड़ पर होगी काले चावल वाले धान की खेती, दूर होगी बस्तर तथा प्रदेश की कुपोषण की समस्या

कोंडागांव, 24 नवंबर। कोंडागांव तथा जगदलपुर जिले में इसकी खेती का प्रयोग सफल रहा है, सोनू राम ध्रुव तथा मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के अन्य किसानों ने जैविक पद्धति से की है इसकी सफल खेती। कई औषधीय गुणों तथा बेहद महत्वपूर्ण पौष्टिक तत्वों, विटामिनों से भरपूर है, यह काला चावल।  चपका व  बेलगांव के प्रगतिशील कृषक समूह अपने दल प्रमुख सोनू राम ध्रुव तथा वन अधिकारी कश्यप जी के नेतृत्व में  ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर कोंडागांव निरीक्षण भ्रमण’  हेतु पहुंचा। उल्लेखनीय है कि सोनू राम जी  पहले से ही मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथ मिलकर अपने खेतों में काली मिर्च तथा ऑस्ट्रेलियन की सफलता पूर्वक खेती कर रहे हैं।इस वर्ष औषधीय गुणों से भरपूर काला चावल वाले धान का रोपण भी  किया है। इस काले चावल वाले धान की भी   जैविक पद्धति से कृषि करने तथा इससे प्राप्त  जैविक उत्पादन के उचित विपणन हेतु उन्होंने ‘ मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ‘ के साथ जुड़ने की इच्छा व्यक्त की। काले चावल वाले धान के महत्व व गुणों को देखते हुए मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने भी इसकी खेती प्रारंभ की है वर्तमान में इसकी खेती जगदलपुर जिले में स्थित खेतों में की जा रही है।   आगामी खरीफ खेती में काले चावल वाले धान को श्री पद्धति से कोंडागांव जिले में भी बड़े पैमाने पर लगाया जाएगा। श्री पद्धति से 1 एक एकड़ में केवल 5 से 6 किलो धान के बीज की आवश्यकता पड़ती है जबकि उत्पादन सामान्य रोपाई की तुलना में ज्यादा आता है। आगामी वर्ष में लगभग 700 एकड़ में काले धान को लगाने की योजना है। आवश्यकतानुसार इस खेती का जैविक प्रमाणीकरण भी करवाया जायेगा।

इस धान की खेती करने वाले किसानों के लिए ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ शत-प्रतिशत पुनर्खरीद की व्यवस्था भी करने जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात है कि इस औषधीय  काले चावल में कई तरह के विटामिन तथा पोषक तत्व पाए जाते हैं जिससे मनुष्य को डायबिटीज तथा अन्य बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है या बेहद ही पौष्टिक तथा गुणकारी है । बस्तर तथा छत्तीसगढ़ का मुख्य भोजन चावल ही है। इससे बस्तर तथा प्रदेश की कुपोषण की समस्या को दूर करने में भी मदद मिलेगी।

अभी जो 45 चावल शासन के द्वारा कुपोषण ग्रस्त क्षेत्रों में वितरित कराने की योजना 1 नवंबर 2020 को लागू की गई है जिसके तहत पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कोंडागांव जिले का चयन किया गया है इसमें दो राइस मिल लो को चयनित किया गया है जो कि चावल को कृत्रिम तरीकों से फोर्टीफाइड राइस बनाएंगे।  इससे  भविष्य में होने वाले स्वास्थ्यगत समस्याओं तथा हानियों से इनकार नहीं किया जा सकता।

जबकि धान से तैयार काला चावल जैविक रूप से प्राकृतिक रूप से फोर्टिफाईड है इसे बायोफोर्टीफाइड कहते हैं और यह निरापद होता है तथा इससे दूरगामी नुकसान की संभावना भी नहीं रहती,,,

तात्कालिक रूप से छत्तीसगढ़ सरकार ने जो फैसला लिया है वह बस्तर में कुपोषण को दूर करने के लिए उचित है किंतु इसका दीर्घकालिक उपाय करना भी जरूरी है क्योंकि हम लोग करने जा रहे हैं।

श्री पद्धति से धान रोपण 

SRI यानी कि, सघन धान प्रणाली (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जाना जाता है। जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है, लेकिन सिंचाई के पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर फसल की सिंचाई की जा सके। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर ही दोबारा सिंचाई करनी होती है। इस तकनीक से धान की खेती में जहां भूमि, श्रम, पूंजी और पानी कम लगता है, वहीं उत्पादन 300 प्रतिशत तक ज्यादा मिलता है।

8 हज़ार साल पहले भी होती थी धान की खेती, चीन में मिले सबूत - India TV Hindi  News

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