सिख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया:योगी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि सिख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया, जिसे देश सदैव याद रखेगा और आज का दिन मातृभूमि, देश और धर्म के प्रति अपनी शहादत देने वाले गुरु पुत्रों एवं माता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का दिन है।

मुख्यमंत्री आज यहां अपने सरकारी आवास पर गुरु गोबिन्द सिंह के चार साहिबज़ादों एवं माता गुज़री जी की शहादत को समर्पित ‘साहिबज़ादा दिवस’ के अवसर पर आयोजित गुरुबाणी कीर्तन कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए श्री योगी ने कहा कि साहिबजा़दा दिवस सिख समाज और प्रदेशवासियों के लिए गौरव का दिन है।

उन्होंने कहा कि आज एक नया इतिहास बन रहा है। गुरु गोबिन्द सिंह जी के चारों सुपुत्रों-साहिबज़ादा अजीत सिंह, साहिबज़ादा जुझार सिंह, साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह तथा साहिबज़ादा फतेह सिंह को सामूहिक रूप से साहिबज़ादा के तौर पर सम्बोधित किया जाता है। गुरु गोबिन्द सिंह ने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपने पुत्रों को समर्पित करते हुए दुःखी न होकर पूरे उत्साह के साथ कहा था-‘चार नहीं तो क्या हुआ, जीवित कई हजार’। उन्होंने कहा कि सिख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया, जिसे देश सदैव याद रखेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरुबाणी कीर्तन हम सबको देश और धर्म के प्रति अपने कर्तव्याें के निर्वहन की प्रेरणा देता है। उन्हाेंने कहा कि इतिहास को विस्मृत करके कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। सिख इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने जब भारत के धर्म और संस्कृति को नष्ट करने, भारत के वैभव को पूरी तरह समाप्त करने का एक मात्र लक्ष्य बना लिया था, तब गुरु नानक जी ने भक्ति के माध्यम से अभियान प्रारम्भ किया और कीर्तन उसका आधार बना।

उन्होंने कहा कि सत्संग के माध्यम से जो कार्य गुरु नानक देव जी ने आगे बढ़ाया। आने वाली पीढ़ियों ने उससे प्रेरणा ली। भक्ति, शक्ति, पुरुषार्थ तथा परिश्रम में प्रत्येक सिख अग्रणी रहता है। सिख समाज अपने पुरुषार्थ और परिश्रम के लिए जाना जाता है। सिख समाज की प्रगति और सफलता में गुरु कृपा का भी योगदान है। सिख समाज की गुरु-शिष्य परम्परा सिखों सहित सभी भारतीयों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्रत्येक भारतीय, सिख परम्परा के लिए सम्मान का भाव रखता है तथा इस परम्परा पर गौरव की अनुभूति करता है।

 

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