प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से-मन की बात, जो मनमोहक नहीं रही

प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से

इसमें किसी को कोई शकशुबा नहीं होगा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग अप्रासंगिक हो चुके आकाशवाणी केंद्रों को पुर्नजीवित कर दिया। दूरदर्शन को अपने प्रचार का माध्यम बनाकर निजी चैनलों की बजाय सरकारी अमले को ही अपने साथ कवरेज के लिए देश-विदेश के दौरे पर उन्होंने जाना शुरू किया। मन की बात के जरिये उन्होंने इस माध्यम का बेहतर उपयोग करके अपनी बात व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाने की पहल की। किसान आंदोलन के चलते उनके मन की बातें अब देश के किसानों को और बहुत सारे लोगों को उतनी मनमोहक नहीं लग रही है। मन की बात जब एक तरफा हो तो वह मन की बात नहीं रह जाती। किसान संत कबीर की तरह ही कह रहे हैं कि तेरा मेरा मनवा कैसे एक होईये। तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन की देखी। अपने पहले कार्यकाल में 3 अक्टूबर 2014 से आकाशवाणी के जरिये मन की बात कहने वाले मोदीजी की 27 दिसम्बर को कही गई। मन की बात की यह 72वीं कड़ी थी। उन्होंने अपने मन की बात के जरिये कभी स्वदेशी अपनाने की कभी भारत को आत्मनिर्भर बनाने की कभी वोकल को लोकल बनाने की बात कही। कोरोना काल में उन्होंने बहुत से नारे दिये जब तक दवाई नहींं तब तक ढिलाई नहीं। अब सारे देश ने उनके मन की बातों की अनदेखी कर ढिलाई बरतना शुरु कर दिया है।

आज देश का किसान एक साथ चार मोर्चे पर लड़ रहा है। पहला सरकार, दूसरा मीडिया, तीसरा पूंजीपतियों और चौथा अंधभक्तों से। इसके अलावा किसान हर साल प्रकृति से भी दो चार तो होता ही है। पूस की रात की ठंड में जब लोग गरम रजाई में घर में दुबके होते हैं तब बहुत से किसान अपने खेत में जबरा कुत्ते के साथ अलाव जलाकर खेत की रखवाली करते है। यही वजह है कि घाटे का सौदा और सर्द ठंड और चिलचिलाती गर्मी में निजात पाने बहुत से किसान खेतीहर मजदूर बनकर शहर की ओर पलायन करने मजबूर हो जाते हैं।

सरकार तीन कृषि कानूनों को किसानों के लिए कितना ही क्रांतिकारी, लाभकारी क्यों न बताएं किसान इसे अपनी बर्बादी का सबब मानकर कड़कड़ाती ठंड में लगातार आंदोलन कर रहे हैं। किसानों को लग रहा है कि यह कानून अप्रत्यक्ष रुप से कारर्पोरेट और विदेशी कंपनियों, पैसे वालों को ही मदद करेगा। किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों और बिजली बिल 2020 की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं। आंदोलनकारी किसान संगठनों का दावा है कि प्रधानमंत्री अपने मन की बात के जरिये लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। वे आंदोलन को तोडऩे के लिए अंजाम लोगों को जिनका खेती किसानी से कोई वास्ता नहीं है उन्हें गोलबंद करके असली किसान संगठनों को दरकिनार करना चाहते हैं।

सुप्रसिद्ध चित्रकार कहानीकार प्रभुजोशी कहते हैं कि सन् 1991 से भूमंडलीकरण के धूर्त दलालों ने, लोकल और ग्लोबल की जुगलबंदी का जो कपट रचा, भारत का प्रधानमंत्री रोज ही रेडियो और टीवी पर चालीसा की तरह पाठ करता हुआ, बरामद होता है। ये केर और बेर को सगे भाई बताना है। ये समझ और शर्म से, एक नेता के परहेज का प्रमाण है।

जिस समाज में लूट शब्द राम नाम तक में भी वैध और सम्मानजनक हो, उसमें राम के नाम पर, देश और समाज को बांटता हुआ, एक नेता नव-उपनिवेश के हित में लुटेरे की भूमिका में आकर जमीनों को कृषकों से छीनकर कॉरर्पोरेट को दे रहा है। किसान उसके लिए ऊन ढोती भेड़ है।
राष्ट्रीय किसान आंदोलन के आह्वान और अपील पर किसानों और नागरिकों ने रविार 27 दिसंबर को 11 बजे, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मन की बात कर रहे थे तब आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में और उनका मनोबल बढ़ाने के लिये ताली थाली बजाया। अपने मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत और बढ़ते परिवेश और स्वीकार्यकता को विभिन्न उदाहरणों से समझाया जिसमें छोटी बड़ी सभी आवश्कता वस्तुओं के साथ खिलौने इत्यादि तक का वर्णन था। किन्तु उन्होंने किसानों को लेकर ऐसी कोई मन की बात नहीं कही जो किसानों को राहत देती।

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों ने शनिवार को सरकार के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का फैसला किया और अगले दौर की वार्ता के लिए 29 दिसंबर की तारीख का प्रस्ताव दिया, ताकि नए कानूनों को लेकर बना गतिरोध दूर हो सके। संगठनों ने साथ ही यह स्पष्ट किया कि कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीके के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए गारंटी का मुद्दा एजेंडा में शामिल होना चाहिए. कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे 40 किसान यूनियनों के मुख्य संगठन संयुक्त किसान मोर्चा की एक बैठक में यह फैसला किया गया है। कृषि कानूनों के खिलाफ सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात के कार्यक्रम के दौरान थाली बज़ाकर विरोध दर्ज कराया. किसान संगठनों ने पहले ही सार्वजनिक रूप से कहा था कि वह इस कार्यक्रम का विरोध जताएंगे।

किसान आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर दिया था कि उनकी सरकार अपने कटु आलोचकों समेत सभी से बातचीत के लिये तैयार है, लेकिन यह बातचीत ”तर्कसंगत, तथ्यों और मुद्दों पर आधारित होनी चाहिये।

मोदी जी मन की बातें जिन्हें रास नहीं आ रही हैं उनका कहना है कि भारत सरकार ने खेती में निजी निवेशकों की मदद के लिए एक लाख करोड़ रुपये आवंटित किये है किन्तु केंद्र सरकार पर निवेश के लिये राजी नहीं है। पीएम किसान योजना के जरिये जहां किसानों को बहुत कम राशि का सहयोग मिला है वहीं फसल बीमा कंपनियों को दस हजार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष दिया जा रहा है किसानों की मांगों के समर्थन में देशभर में राजनीतिक पार्टियों ने धिक्कार दिवस मनाकर सरकार हितैषी व्यवसायिक घरानों के उत्पादों और सेवाओं के खिलाफ अभिमान भी तेज करने की चेतावनी दी है। विरोध स्वरुप आज देशभर में कई स्थानों पर थाली पीटी गई। कोरोना के खिलाफ जंग में मोदी के आव्हान पर लोगों ने अपने-अपने घरों के आगे दीये जलाकर थाली ताली पीटी थी। आज दीए तो नहीं चले किन्तु किसानों के समर्थन में और मन की आवाज के विरोध में लोगों ने ताली-थाली जरूर बजाई। केंद्र के तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों, मन की बात में बेतुका दावा कर रहे हैं, कि किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकते है उन्हें कंपनियां बेहतर दाम देगी। सब जानते हैं कि प्रायवेट कंपनियां केवल मुनाफे के लिए निवेश करती है। लोग अभी तक ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिये हुए छलावे को नहीं भूले हैं। जाते-जाते गालिब साहब के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए उन्ही का शेर मौजूदा हालात के लिए-

हम जानते हैं जन्नत की हकीकत गालिब
दिल को बहलाने के लिए ख्याल अच्छा है।

 

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