जन्मदिनः काका ने बताया क्या होता है सुपरस्टार
डॉ. महेश परिमल
काका यानी राजेश खन्ना। फिल्म प्रोड्यूसर कहते-ऊपर आका, नीचे काका। लोकप्रियता की पराकाष्ठा इतनी कि उसकी सफेद कार युवतियों की लिपस्टिक से गुलाबी हो जाती। उनकी गाड़ी की धूल से लड़कियां अपनी मांग भरती थीं। जिधर चलते, भीड़ उसके साथ होती। लोगों की बेपनाह मोहब्बत पाने वाला, अपनी एक्टिंग से लोगों को रिझाने वाला, प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर को परेशान करने वाला, अपनी हठधर्मिता से अखबारों की सुर्खियां बनने वाले इस शख्स के दिन ऐसे फिरे कि एक रेस्टारेंट में घंटों अकेले बैठकर इंतजार करता कि कोई आए और उससे बात करे। पर उस समय उसके साथ कोई नहीं था। भीड़ साथ लेकर चलने वाला शख्स तन्हा रह गया। उजालों को साथ लेकर चलने वाला गुमनामी के अंधेरे में खो गया।
जी हां, बात हो रही है सुपर स्टार राजेश खन्ना की। वही काका, जिनके बालों की स्टाइल, गुरु कॉलर वाली शर्ट पहनने का तरीका, पलकों को हल्के से झुकाकर गर्दन टेढ़ी कर निगाहों के तीर छोड़ने की अदा से सिने प्रेमियों की पूरी एक पीढ़ी को सम्मोहित किया। वही काका, जिसे युवतियां अपने खून से खत लिखती। इससे बढ़कर कुछ लड़कियों ने अपने हाथ या जांघ पर उनका नाम गुदवा रखा था। कई ने उनकी तस्वीर को साक्षी मानकर उससे शादी कर ली। निर्माता-निर्देशक उसके बंगले के सामने लाइन लगाकर खड़े रहते थे। वे मुंहमांगे दाम चुकाकर उन्हें साइन करना चाहते थे। राजेश खन्ना द्वारा पहने गए गुरु कुरते खूब प्रसिद्ध हुए और कई लोगों ने उनके जैसे कुरते पहने। काका का कहना था कि वे अपनी जिंदगी से बेहद खुश हैं। दोबारा मौका मिला तो वे फिर राजेश खन्ना बनना चाहेंगे और वही गलतियां दोहराएंगे। यह था राजेश खन्ना का मायावी संसार, जहां एक समय उसकी तूती बोलती थी। लेकिन कहा गया है कि वक्त हमेशा एक-सा नहीं होता। वक्त ही है, जो जिसे आसमां तक पहुंचाता है, उसे रसातल में भी पहुंचा सकता है। यही हुआ, राजेश खन्ना के साथ। वे एक ऐसे फिल्मी तिलिस्म का हिस्सा थे, जिसमें हर कोई उलझकर रह जाता है।
बंगाल की एक बुजुर्ग महिला ने राजेश खन्ना पर किताब लिखने वाले ने जब पूछा कि राजेश खन्ना क्या थे आपके लिए? तो उसका जवाब था-आप नहीं समझेंगे कि राजेश खन्ना से हमारा क्या रिश्ता है। आपकी उम्र नहीं है, उस रिश्ते को समझने की। राजेश खन्ना की कोई भी फिल्म जब हम देखने जाते थे, तो उसके पहले हम ब्यूटी पॉर्लर पर जाकर मेकअप करवाते थे। जब हम सिनेमा हॉल के अंदर होते, तो राजेश खन्ना जो भी संवाद बोलते, तो हमें लगता कि वे हमें ही देखकर बोल रहे हैं। ऐसा केवल मेरे ही साथ नहीं, बल्कि हर युवती के साथ होता था। सभी काका को अपना समझती थीं। उनके संवाद, उनका अभिनय, सब कुछ हमारे लिए ही होता था। युवक तो उनकी फिल्में देखकर अपनी परेशानियां, अपनी तकलीफें, अपने ग़म तक भूल जाते थे। ये थी राजेश खन्ना के प्रति लोगों की दीवानगी।
1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर एंड फिल्म फेयर के प्रतिभा खोज अभियान में राजेश खन्ना ने बाजी मारी, उसके बाद उनका सफर शुरू हो गया। सबसे पहले जीपी सिप्पी ने राजेश खन्ना को अपनी फिल्म “राज़” में लिया। इस फिल्म में उनका डबल रोल था। इसके बाद चेतन आनंद ने उन्हें आखिरी खत में लिया। संयोग से आखिरी खत पहले रिलीज हुई। जब फिल्म “राज़” की शूटिंग चल रही थी, तब राजेश खन्ना को 8 बजे पहुंचना था, लेकिन वे 11 बजे पहुंचे। एकदम नए कलाकार के इस तरह से लेट होने पर कुछ सीनियर टेक्नीशियन ने उन्हें डांटा-तब उनका कहना था कि एक्टिंग और कैरियर की ऐसी की तैसी, मैं अपना लाइफ स्टाइल नहीं बदलूंगा। ये था उनका रूतबा। तब लोगों ने कहा था-ऐसे मिजाज वाला या तो बहुत जल्दी गायब हो जाएगा या बहुत ऊपर जाएगा।
राजेश खन्ना को सही पहचान मिली फिल्म “आराधना” से। वैसे शक्ति सामंत ने यह फिल्म शर्मिला टैगोर के लिए बनाई थी। पूरी फिल्म शर्मिला टैगोर पर ही केंद्रित थी, पर राजेश खन्ना का जादू इस फिल्म में ऐसा छाया कि बरसों तक लोग उस पर अपनी दीवानगी लुटाते रहे। हालत यह हो गई कि उसके पहले इस तरह की दीवानगी किसी अभिनेता में नहीं देखी गई। भले ही उसके बाद राजेंद्र कुमार, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान आदि जो भी आएं हों, राजेश खन्ना जैसी दीवानगी फिर किसी अभिनेता को लेकर नहीं देखेी गई। उसने जिस ऊंचाई को छुआ, वहां तक कोई नहीं पहुंच पाया। फिल्म आनंद का आखिरी सीन राजेश खन्ना के लिए वॉटर शेड मूवमेंट कहा जाता है। जिसमें राजेश खन्ना की मौत के बाद अमिताभ लगभग चीखते हुए कहते हैं-
“मैं इस तरह से तुम्हें खामोश नहीं होने दूंगा। 6 महीने से तुम्हारी बक-बक सुन रहा हूं मैं। बोल-बोल के मेरा सर खा गए हो तुम। बोलो- बातें करो मुझसे, बातें करो मुझसे।” तभी पीछे से आवाज आती है-“बाबू मोशाय…”। यहां पर राजेश खन्ना का मैनेरिज्म था, एक खास तरह के अभिनय का अंदाज था, वह उसका पिक था। लोगों को लगा कि राजेश खन्ना जीवित हैं। वे मर नहीं सकते।
वह समय ऐसा था, जब अमिताभ इतने बड़े स्टॉर नहीं थे। इस सीन को करने के लिए वे काफी तनाव में थे। उस समय उनके सबसे करीबी थे हास्य अभिनेता महमूद। अमिताभ ने महमूद से कहा-भाई जान, यह सीन मुझसे नहीं हो पाएगा। इस सीन के लिए मैं दो रातों से सो नहीं पाया हूं। मैं कैसे कर पाऊंगा? तब महमूद ने उन्हें समझाया-तुम यह समझ लो कि राजेश खन्ना वाकई मर गए हैं। जानते हो राजेश खन्ना क्या है। वह मर गया है। इस बात को दिमाग में ले आओ, तो सीन हो जाएगा। इसके बाद राजेश खन्ना की एक के बाद एक फिल्में हिट होती रहीं। वे कामयाबी की बुलंदियों को छूने लगे। उन्हें तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। इसके लिए उन्हें कुल 14 बार मनोनीत किया गया।
इसी बीच उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। वे नई दिल्ली लोक सभा सीट से पाँच वर्ष 1991-96 तक कांग्रेस पार्टी के सांसद रहे। बाद में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को हराया।
यहीं से एक दौर ऐसा भी आया, जब वे कामयाबी को पचा नहीं पाए। कामयाबी के साथ बहुत से ऐब उनके साथ चलते रहे। लेट-लतीफी के अलावा भी बहुत से ऐसे शगल थे, जो कुछ लोगों को रास नहीं आ रहे थे। फिल्म रोटी के समय उनका दिल डिंपल कापड़िया पर आ गया। उससे शादी करने में उन्हें ज़रा भी देर नहीं की। दो बच्चियों के जन्म के बाद फिल्म सौतन के दौरान उनका दिल टीना मुनीम पर आ गया। यहीं से दोनों के बीच दरार आ गई, जो आखिर में तलाक में तब्दील हो गई। धीरे-धीरे उन्हें कैंसर ने जकड़ लिया। भीड़ उनके आसपास से छंटने लगी। उनके सितारे गर्दिश में जाने लगे। हालत यह हो गई कि इंकम टैक्स वालों ने उनका बंगला आशीर्वाद सील कर दिया। तो वे अपनी ऑफिस में ही रहने लगे थे। उसी ऑफिस की बगल में एक मेकडोनाल्ड रेस्टारेंट था, जहां वे जाते थे, एक बर्गर खाते थे और अपना फेवरिट स्ट्रॉबेरी मिल्क शेक पीते थे। जहां वे अपने चाहने वालों का इंतजार करते थे। कोई आए, उनसे बात करे। कभी कोई मिल भी जाता था, तो खुश हो लेते थे। पर अधिकांश समय वे वहीं तन्हा बैठे रहते थे।
कई बार वे अवार्ड समारोह में भी जाते। वहां यदि उन्हें स्टेज पर बुलाया जाता, तो वे अपनी ही फिल्म दाग का वही डायलॉग दोहराते, जिसे साहिर लुधियानवी ने लिखा था- इज्जतें, चाहतें, शोहरतें, उल्फतें, कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं,
आज मैं हूँ जहाँ, कल कोई और था, ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था…। अपने जीवन के आखिर दौर में वे बहुत ही एकाकी हो गए। एक दिन राजेश खन्ना ने अपनी टूटती हुई आवाज में कहा- टाइम अप हो गया…पैकअप… 29 दिसम्बर 1942 से अमृतसर से शुरू होने वाला उनका यह सफर 18 जुलाई 2012 को मुम्बई में खत्म हो गया। इसी के साथ खत्म हुआ, एक मैनेरिज्म, जिसमें लाखों लोग बरसों तक कैद रहे।