प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से-मरे जाओ और मल्हार गाओ

हमारे देश में वैसे ही धार्मिक, सामाजिक और अवैज्ञानिक सोच के चलते बहुत से अंधविश्वास व्याप्त है। धर्म, संप्रदाय और राजनीति से जुड़े बहुत से व्यक्ति, संगठन समय-समय पर इसअंधविश्वास, कथित धार्मिक संस्कार, रीति-रिवाज , मान्यताओं की आड़ में लोगों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। कई बार भोली भाली धर्मपरायण, धार्मिक संस्कारों से लैस जनता उनके बहकावे में आकर नये ज्ञान, नये अविष्कार और नई सोच से वंचित रह जाती है। बाकी देशों में गाय दूध देने के काम आती है, हमारे यहां दंगा कराने के लिए बहुत बार गायों काउपयोग किया जाता है। यही हाल सुअर के साथ भी है। यूं तो पूरी दुनिया में बहुत सारे लोग बड़े चाव से सुअर का मांस खाते हैं किन्तु लोगों के लिए सुअर हराम है। विश्वव्यापी बीमारी कोरोना से जूझ रहे लोग बड़ी उम्मीद से कोरोना की वैक्सीन का इंतजार कर रहे थे। अब जब वैक्सीन बनने की प्रक्रिया सभी जगह पूरी होने जा रही है और देशों ने वैक्सीन तैयार कर ली है तब वैक्सीन में गाय के खून और सुअर की चर्बी का मामला उछालकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाकर ऐसी बातों में उलझा दो जो उसकी धार्मिक, उसकी संस्कारिक, बातों से जुड़े हुए हैं, जिनके बारे में ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्यों की बजाय मिथकीय कथाएं ज्यादा है। कहावत है मरे जाओ और मल्हार गाओ। आज कोरोना वैक्सीन को लेकर हमारी स्थिति कुछ ऐसी ही होती जा रही है।

कट्टर धार्मिक विश्वास से ग्रसित कुछ लोगों को लगता है कि कयामत का दिन जल्दी आयेगा और जब वे जन्नत में जायेंगे तो वहां उन्हें हुर्रे मिलेगी। कुछ लोगों को डॉक्टरों से ज्यादा चंगाई सभा पर विश्वास है तो कुछ लोग सबसे प्राचीन संस्कृति, सबसे ज्यादा देवी-देवताओं की मौजूदगी से गौरवान्वित होकर भारत को विश्व गुरु और भारत भूमि को पुण्यभूमि बताने में ही आत्मगौरव महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि पेनिसिलिन द्वितीय महायुद्घ के दौरान नहीं महाभारत के समय ही खोज ली गई थी। ऐसी ही सोच के बहुत से लोगों को  वैज्ञानिकों की खोज पर कम भरोसा था, उन्हें यहीं के हरिद्वार की दवाई को ही कोरोना मुक्ति का मार्ग समझ लिया था। इस देश को सबसे बड़ी बीमारी गरीबी की है। कोविड-19 की वैक्सीन की वितरण प्रणाली के लाभान्वितों की सूची में यही वर्ग हमेशा की तरह अंत्योदय श्रेणी में रहेगा। फिलहाल तीन करोड़ लोगों को निशुल्क वैक्सीन देने का प्लान है। ये वैक्सीन फ्रंट लाईन कार्यकर्ताओं को मिलेगी।

अभी हमारे देश में कोरोना से जंग में वैक्सिनेशन प्रोग्राम शुरु होने को है मगर, यहां एक अलग हीतरह की बहस छिड़ी हुई है। इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी की बात कहकर बहस की शुरुआत की तो अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि भारत में लोगों को दी जाने वाली कोरोना वैक्सीनको लेकर कुछ चीजें साफ हों, इसमें गाय का खून या ऐसी कोई दूसरी चीज नहीं मिली हुई तो नहीं है जिससे सनातन धर्म आहत होता है। हिंदू धर्म में गाय को पूजा जाता है। गाय को माता मानते हैं। ऐसे में अगर गाय का खून हमारे शरीर  में जाएगा तो उससे हमारे धर्म को नुकसान पहुंचेगा। वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव वैक्सीन को भाजपा की वैक्सीन बताकर इसका बहिष्कार की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार आयेगी तो सबको फ्री वैक्सीन लगेगी। हम बीजेपी का टीका नहीं लगवा सकते। उन्हीं की पार्टी के एक एमएलसी आशुतोष सिंह ने कहा है कि बीजेपी बाद में कह देगी कि जनसंख्या कम करने के लिए नपुंसक बनाने वाली वैक्सीन लगा दो। इस तरह की बयानबाजी कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक जो शोध कर रहे हैं, यह एक तरह से उनका अपमान है। इस देश के विचारहीन नेताओं, कट्टरपंथी, दकियानूसी लोगों के लिए अब एक टीका बनाने की जरुरत है जो इनके दिमाग का दीवालियापन समाप्त करें। अभी तक हमारे देश में कोरोना से 1,02,08,725 लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1,47,940 लोगअपनी जान गंवा चुके हैं। कोरोना का कहर अभी भी बना हुआ है और लोग हैं की मान नही रहे हैं।

जहां एक ओर कट्टरपंथी लोग उलजुलूल बातें कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अच्छी बात यह भी है कि दारुल उलूम देवबंद ने कोरोना वैक्सीन के खिलाफ उल्टे-सीधे बयान देने वालों को नसीहत दी है। कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी होने की खबर पर कुछ मुस्लिम नेताओं ने इसकी मुखालिफत है। रजा एकेडमी मुम्बई ने सरकार से अपील की थी कि वे वैक्सीन मामले में भी चीन से किसीतरह की मदद न ले। क्योंकि ऐसी खबर मिल रही है कि चीन अपने वैक्सीन में सुअर की चर्बीमिला रहा है। यहूदियों और मुसलमानों के अलावा कई धार्मिक समुदायों में टीके के इस्तेमाल कोलेकर कंफ्यूजन बना हुआ है। इनमें सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप सेअपवित्र माना जाता है।  मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने मुस्लिम समाज से किसी भी तरहके बहकावे में आने की बजाये कोरोना वैक्सीन लगावाने की बात कही है।

संयुक्त अरब अमीरात की यूएई फतवा काउंसिल ने कोरोना वैक्सीन के टीकों में सुअर के मांस के जिलेटिन के इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिए जायज़ करार दिया है। कोरोना वायरस(कोविड-19) के रोकथाम के लिए कई देशों में लोगों को कोरोना वैक्सीन देने की शुरुआत भी की जा चुकी है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में लोगों को कोरोना वैक्सीन की डोज देने की प्रक्रिया जारी है।

हमारे देश में दो स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग के लिए रविवार को मंजूरी दे दी। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशिल्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को एक साथ मंजूरी दी गई है। इसके साथ ही भारत दुनिया का पहला ऐसा देश हो गया है, जिसने एक साथ दो वैक्सीन को मंजूरी दी है। दोनों वैक्सीन को आपातकालीन स्थिति में प्रतिबंधित उपयोग के लिए अनुमति दी जाती है। वैक्सीन बनने पर खुशी जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक उत्साही लड़ाई को मजबूत करने के लिए एक निर्णायक मोड़! मुक्त देश के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। इसी माह से देश में वैक्सीनेशन शुरू हो जाएगा।

ऐसा नहीं है कि किसी वैक्सीन दवाई को लेकर इस तरह का विवाद पहली बार हो रहा है। टीकों को ऑटिज्म से जोड़ा गया है लेकिन वर्ष 1985 में एमएमआर को ऑटिज्म से जोड़ा गया था। इसके बाद लाखों बच्चों ने यह साबित कर दिया कि वैक्सीन और ऑटिज्म के बीच कोई संबंध नहीं है। ऐसी ही कुछ बात वैक्सीन एमआरएनए के लिए कही गई थी कि वह मानव जीनोम में शामिल हो जाती है और हमारी आनुवंशिक संरचना (जेनेटिक स्ट्रक्चर) को बदल देती है ? ऐसा बिल्कुल नहीं है एमआरएनए वैक्सीन सेल को स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए एक मैसेज देता है जो एंटीबॉडी उत्पादन को प्रेरित करता है। भारत में बनी दोनों वैक्सीन जिसमें  सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन में कोरोना वायरस एंटीजेन डिलीवर करने वाला चिंपैंजी एडेनोवायरस इस्तेमाल किया गया है और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-1 जिसे डॉ. रेड्डी लैब द्वारा भारत में बनाया गया है।  बच्चों के टीकाकरण में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश वर्तमान टीके इस तकनीक द्वारा बनाए गए हैं।

जिन लोगों को लग रहा है कि वैक्सीन का टीका लगवाने के बाद उन्हें मास्क नहीं लगाना पड़ेगाउनके लिए दुखद सूचना यह है कि उन्हें टीका लगने के बाद भी लगाकर घूमना होगा। क्योंकि ऐसाकेवल तभी किया जा सकता है जब अधिकांश आबादी ने झुंड प्रतिरक्षा (हर्ड इम्यूनिटी) विकसितकर ली है।

वैक्सीन जब उपलब्ध होगी, तब होगी किन्तु कुछ लोगों के लिए फिलहाल यह अच्छा खासा चर्चाका मुद्दा हो गया है। हमारा मीडिया इसे अपने-अपने चैनलों के जरिये हवा देने में लगा है। जिसदेश में धर्म व्यवसाय का पर्यायवाची बन जाये, जहां धर्म का उपयोग दंगा कराने के लिए होने लगा, जहां गरीब भूखे बच्चों को दूध देने की बजाय दूध गंगा को पवित्र करने के काम आये वहां के नेताओं, धार्मिक मुल्ला मौलवी और धर्मीचारों के इस तरह के बयान चौंकाते नहीं। हमें वैक्सीन के बिना और वैक्सीन के साथ अपनी सभी तरह की इम्युनिटी बढ़ाने की जरुरत है ताकि ये कथित वायरस ज्यादा संक्रमण ना फैला सके।

मेरे प्रिय नवगीतकार स्वर्गीय भगवान स्वरूप सरस की कविता है –
दूध कटोरा तक्षक को,
शैशव को सिसकी
सब का सब आकाश बांधकर चिले खिसकी
कब तक अपनी भूख नारों, झुनझुनों से बहलाएं
छोटे -छोटे
दरवाजे हैं
आदमकद इच्छाएं

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